शारदीय नवरात्रि कब है: सम्पूर्ण जानकारी

Amit Srivastav

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पालकी में होके सवार माता रानी आ रही हैं हम सबके घर द्वार। शारदीय नवरात्रि 2024 कब है? नवरात्रि कि पूजा-सामग्री, पूजा विधि-विधान, सम्पूर्ण जानकारी यहां दी गई है।
3 अक्टूबर 2024 से 12 अक्टूबर 2024 तक शारदीय नवरात्रि। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में अश्विन “कुवार” मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से विजयादशमी तक शारदीय नवरात्रि मनाया जाएगा। अग्रेजी कैलेंडर के अनुसार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर 2024 से 12 अक्टूबर 2024 तक 10 दिनों तक मनाया जायेगा। नवरात्रि के प्रथम दिन 3 अक्टूबर 2024 बृहस्पतिवार को हस्त नक्षत्र ऐन्द्र योग व जयद योग में पूजन होगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा पालकी पर चढ़कर आएंगी और चरणायुध “मुर्गे” पर बैठकर जाएंगी। माता का पालकी पर चढ़ कर आने का मतलब मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मां दुर्गा का पालकी की सवारी शुभ का सूचक है।
नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के दिन तिथि अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
रवि व सोम को हाथी, शनि व मंगल को घोड़ा, गुरु व शुक्र को पालकी, बुध को नौका आगमन। इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर दिन गुरु यानि गुरुवार से प्रारंभ हो रही है, इसके अनुसार देवी मां पालकी पर विराजकर होकर कैलाश से धरती पर आ रही हैं।

प्रस्थान वाहन रवि व सोम भैंसा, शनि और मंगल को सिंह, बुध व शुक्र को “गज” हाथी, गुरु को नर वाहन पर प्रस्थान। साधक जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ हैं एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समस्याओं के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण देवी पूजन विधि-विधान आज भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अमित श्रीवास्तव बता रहे हैं, आशा है ! आप सभी जगत-जननी मां आदिशक्ति दुर्गा जी के भक्त जन साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।

नवरात्रि कब से कब तक तिथि वार

शारदीय नवरात्रि कब है: सम्पूर्ण जानकारी

पहला नवरात्र – प्रथमा तिथि 3 अक्टूबर 2024 दिन गुरुवार, माँ शैलपुत्री की उपासना।
दूसरा नवरात्र – द्वितीया तिथि, 4 अक्टूबर, शुक्रवार, माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।
तीसरा नवरात्र – तृतीया तिथि, 5 अक्टूबर, शनिवार, माँ चंद्रघंटा की उपासना।
चौथा नवरात्र – चतुर्थी तिथि, 6 व 7 अक्टूबर, रविवार, सोमवार माँ कुष्मांडा की उपासना।
पांचवां नवरात्र – पंचमी तिथि, 8 अक्टूबर, मंगलवार, माँ स्कन्द जी की उपासना।
छठा नवरात्र – षष्ठी तिथि, 9 अक्टूबर, बुधवार, माँ कात्यायनी की उपासना।
सातवां नवरात्र – सप्तमी तिथि, 10 अक्टूबर, बृहस्पति, माँ कालरात्रि की उपासना।
आठवां नवरात्र – अष्टमी तिथि, 11 अक्टूबर, शुक्रवार, माँ महागौरी की उपासना।
नौवां नवरात्र – नवमी तिथि, 11 अक्टूबर, शुक्रवार, माँ सिद्धिदात्री की उपासना।
दशहरा – विजयादशमी तिथि, 12 अक्टूबर 2024, शनिवार।
ब्रत का समापन कन्या पूजन माता कि विदाई समारोह।

नवरात्रि के दौरान एक तिथि की वृद्धि व दो तिथि एक दिन होने से दुर्गापूजा 3 अक्टूबर बृहस्पतिवार से 12 अक्टूबर शनिवार 10 दिनों का होगा।

अष्टमी नवमी का व्रत 11 अक्टूबर शुक्रवार को रहेगा।

नवरात्रि में कलश स्थापना का बहुत बड़ा महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे घट स्थापना भी कहते है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी आदिशक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का कलश में आह्वान करके उसे स्थापित किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लेना चाहिए जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह बचा रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए बलूई मिट्टी की एक परत बिछा दें। बालू मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए। पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत बालू मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से बलूई मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वास्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी, फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र, पंचरत्न तथा सिक्का रुपी द्रव्य डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते पंचपल्लव डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली “रक्षासूत्र” बांध दें। इस नारियल को कलश के ऊपर अक्षत चावल भरे पात्र में रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है, पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि हे समस्त देवी देवता आप सभी इस नवरात्रि दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।
आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें।
ॐ अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें अब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें –
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:,
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें- ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्।।
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए।
अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

दुर्गा पूजन हेतु संकल्प:

पंचोपचार करने के बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए। संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य – अपने नगर/गांव का नाम लें, क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2082, तमेऽब्दे प्रमादि नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ मंगल वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। इसे हम सब कलश वेदी कहते हैं।
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई बलुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
पात्र में बोने के लिए जौ – गेहूं भी ले सकते हैं।
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश – सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते हैं।
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल, रोली, मौली, इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का – किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है, पंचरत्न – हीरा, नीलम, पन्ना, माणक और मोती, पीपल, बरगद, जामुन, अशोक और आम के पत्ते – सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है!
कलश ढकने के लिए ढक्कन -मिट्टी का या तांबे का।
ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल।

सम्पूर्ण विधि-विधान पूजा सामग्री:

सुखा नारियल गोला, लाल कपडा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूप, अगरबत्ती। पंचमेवा, पंच​मिठाई, रूई, कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, 5 सुपारी, लौंग, पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शर्करा), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।
जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
3 अक्टूबर कलश स्थापना कर सबसे पहले गौरी गणेश जी का पुजन करें।
भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।
हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि,
अर्घ्य अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि,
आचमनीय-स्नानीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि
वस्त्र लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीत ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि,
पुनराचमनीयम् दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः
रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः
दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि,
मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक।
प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः
इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पयामि,
अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
आवाहन श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि।।
आसन श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
अर्घ्य श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि।।
आचमन श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि।।
स्नान श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि।।
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
पंचामृत स्नान श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि।।
पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
गन्धोदक-स्नान श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
गंधोदक स्नान- रोली चंदन मिश्रित जल! से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
शुद्धोदक स्नान श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि।।
आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
वस्त्र श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि।।
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
सौभाग्य सू़त्र श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि।।
मंगलसूत्र या हार पहनाए।
चन्दन श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि।।
चंदन लगाए
ह​रिद्राचूर्ण श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि।।
हल्दी अर्पण करें।
कुंकुम श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि।।
कुमकुम अर्पण करें।
​सिन्दूर श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि।।
सिंदूर अर्पण करें।
कज्जल श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि।।
काजल अर्पण करें।
दूर्वाकुंर श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि।।
दूर्वा चढ़ाए।
आभूषण श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि।।
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।
पुष्पमाला श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि।।
फूल माला पहनाए।
धूप श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि।।
धूप दिखाए।
दीप श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि।।
दीप दिखाए।
नैवेद्य श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि।।
नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।
फल श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि।।
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े
ताम्बूल श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि।।
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।
द​क्षिणा श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि।।
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मां ये सब आपका ही है आप ही हमें देती हैं हम इस योग्य नहीं आपको कुछ दे सकें। आरती करें।

आरती जय अंबे गौरी:


जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…
श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥

आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।
इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

शारदीय नवरात्रि कब है: सम्पूर्ण जानकारी

इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर, घर मे सुख समृद्धि की कामना करें, प्रसाद बांटें। प्रेम से बोलिए जय मातादी। माता की पूजा-अर्चना विधि-विधान को शेयर किजिये मां शेरावाली की भक्ति भाव से पूजा करने के लिए अपनों को प्रेरित किजिये, माता रानी की कृपा आप सभी पर बनी रहेंगी। ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज संपादक अमित श्रीवास्तव की सुस्पष्ट लेखनी पढ़ने के लिए सादर धन्यवाद। हमारी कर्म धर्म लेखनी से आप सब का जीवन धन्य हो। आप सब के जीवन में सुख-समृद्धि व ढ़ेरों खुशियां मिलती रहे इन्हीं शुभ मंगलकामनाओ के साथ नवरात्रि कि हार्दिक शुभकामना बहुत-बहुत बधाई।

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