उत्तर प्रदेश का देवरिया Deoria जिला एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल है, जिसे देवभूमि “देवों की नगरी” कहा जाता है। यह जिला धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है। भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी में जानिये देवरिया को किस आधार पर देवभूमि माना जाता है देवरिया जिले से जुड़ी अद्भूत सम्पूर्ण जानकारी जो आप जानकर हैरान हो जाएंगे। यहां से जुड़ा हुआ है त्रेता द्वापर युग का धार्मिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इतिहास। Table of contents से अपनी खास पसंदीदा हेडिंग पर डायरेक्टर जाकर पढ़ सकते हैं। लेख बड़ा है इत्मिनान से पढ़िए भरपूर जानकारी दी गई है।
Table of Contents
देवरिया नामकरण और पौराणिक महत्व
“देवरिया” नाम की उत्पत्ति संस्कृत शब्द “देव” से हुई है, जिसका अर्थ है “देवताओं का निवास”। मान्यता है कि यह स्थान प्राचीन काल में ऋषियों, मुनियों और देवताओं की तपोभूमि रहा है। यहाँ के कई मंदिर और धार्मिक स्थल इस मान्यता की पुष्टि करते हैं।
कुछ किंवदंतियों के अनुसार, यह क्षेत्र भगवान शिव और विष्णु से भी जुड़ा हुआ है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहाँ पर देवताओं का वास हुआ करता था, जिसके कारण इसे “देवपुर”, “देवरहवा” और फिर “देवरिया” कहा जाने लगा।
देवरिया कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

देवरिया का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और इतिहास में मिलता है। यह क्षेत्र महाजनपद काल से लेकर गुप्त, मौर्य, पाल और मुगल शासकों के अधीन रहा है।
प्राचीन काल:
देवरिया क्षेत्र कोषल और मगध साम्राज्य का हिस्सा था। यह व्यापार और धार्मिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। मान्यताओं के अनुसार देवरिया जिला मे सलेमपुर के समीप सोहनाग गाँव भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का तपस्थली था। यहां आज भी भगवान परशुराम के तपोभूमि पर एक तालाब है जहां कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति स्नान करने आते हैं जिससे उनका कुष्ठ रोग ठीक होने की बात कही जाती है। यही स्थान मगध नरेश अयोध्या और जनकपुर कि सीमा रेखा मानी जाती है।
बौद्ध एवं जैन काल:
यह क्षेत्र बौद्ध और जैन धर्म से भी प्रभावित रहा है। कहा जाता है कि सम्राट अशोक के समय में यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ था।
मध्यकाल:
मुगल शासनकाल में यह क्षेत्र प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
ब्रिटिश शासन:
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देवरिया के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। यह जिला 1946 में गोरखपुर से अलग होकर अस्तित्व में आया।
Deoria के सुप्रसिद्ध स्थान:
Deoria जिले में धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से कई महत्वपूर्ण स्थान स्थित हैं, जो इसे देवभूमि होने का एक विशिष्ट पहचान देते हैं। ये स्थान आस्था, विरासत और संस्कृति के प्रतीक हैं। क्रमशः नीचे विस्तार से हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव अपनी कर्म-धर्म लेखनी से बताते जा रहे हैं तो अंत तक पढ़िए और जानिए देवरिया देवभूमि देवों की नगरी का विस्तृत वर्णन।
- देवरहवा बाबा आश्रम मईल, देवरिया संत देवरहवा बाबा की तपोस्थली, जिन्हें सिद्ध पुरुष माना जाता है। यहाँ श्रद्धालु दूर-दूर से आशीर्वाद लेने आते रहे हैं।
- कुंदनपुर रुक्मिणी का जन्मस्थान कोड़रा गाँव मझौली राज देवरिया श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय पत्नी रुक्मिणी का जन्म विदर्भ देश के राजा भीष्मक के यहाँ हुआ था। उनकी नगरी को “कुंदनपुर” कहा जाता था। वर्तमान का कोड़रा गाँव ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुंदनपुर था।
- दिग्वेश्वरनाथ मंदिर मझौली राज, देवरिया भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि यहाँ अश्वत्थामा पूजा-अर्चना करते हैं।
- सोहगरा धाम बाबा हंसनाथ शिव मंदिर, देवरिया यह स्थान बाबा हंसनाथ जी की तपोस्थली के रूप में प्रसिद्ध है।यहाँ हर साल विशाल मेला और साधु-संतों का संगम होता है। माना जाता है, भगवान शिव हंसनाथ के रुप में दैत्यराज बाणासुर के सेनापति रहे हैं।
- सोहनपुर प्राचीन शोणितपुर, बाणासुर का स्थान मान्यता है कि यह महाबली बाणासुर की राजधानी शोणितपुर था। यहाँ छोटी-छोटी प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक स्थल स्थित है।
- देवरही माता मंदिर, देवरिया सदर रेलवे स्टेशन के निकट स्थित देवरही माता मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शक्ति का एक प्रमुख केंद्र है।
- लाहिपार देवी मंदिर, देवरिया लाहिपार देवी मंदिर एक प्राचीन और सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है।
- मंठिया देवी मंदिर, भटनी, देवरिया भटनी क्षेत्र में स्थित खोरीबारी रामपुर मंठिया देवी मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
- हनुमान मंदिर देवरिया जगह-जगह हनुमानजी की मंदिर भक्ति और आस्था का प्रतीक है। यहां शनिवार और मंगलवार को बड़ी धूमधाम से हनुमान जी की किर्तन आरती होती है।
- दुर्गा देवी मंदिर अहियापुर देवरिया देवी दुर्गा जी का यह मंदिर अग्रेजी हुकुमत मे रेलमार्ग का निर्माण से जुड़ी एक पौराणिक कहानी व्यक्त करता है।
- रामजानकी मंदिर (महुआडीह, देवरिया) भगवान श्रीराम और माता सीता का यह मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है। यहाँ रामनवमी और विवाह पंचमी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
- बालाजी मंदिर सदर देवरिया यह मंदिर बालाजी को समर्पित है, शहर के निकट सदर रेलवे स्टेशन देवरिया के पास है।
- दुर्गा मंदिर, रुद्रपुर देवरिया यह मंदिर देवी दुर्गा माँ को समर्पित एक मनमोहक मंदिर है।
- शिव मंदिर, बैतालपुर देवरिया देवों के देव महादेव की यह अनुपम मदिर भक्ति भाव का प्रतीक है।
- सांस्कृतिक और लोक परंपराएँ देवरिया की सांस्कृतिक और लोकलुभावन परंपराएँ पर्यटकों का मन मोह लेती है।
- सती माई मंदिर बरहज, देवरिया यह एक सिद्ध स्थल है, जहाँ श्रद्धालु माँ सती की पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्रि और सावन में यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। बरहज आने से चार धाम यात्रा का पूर्य प्राप्त होता है। ब= बद्रीनाथ र= रामेश्वरम ह= हरिद्वार ज= जगन्नाथपुरी। इन चारों धाम के मिश्रण से बरहज की स्थापना है।
- लार शिव मंदिर बाबा भूतेश्वर नाथ, देवरिया भगवान शिव का यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। सावन के महीने में यहाँ विशेष पूजा और जलाभिषेक किया जाता है।
- कपरवार संगम स्थल देवरिया यहाँ गंडक और राप्ती नदियों का संगम होता है। यह स्थान धार्मिक अनुष्ठानों और ध्यान-साधना के लिए प्रसिद्ध है।
- मदनपुर देवी स्थान देवरिया यह मंदिर शक्ति उपासना का एक प्रसिद्ध स्थल है। नवरात्रि के दौरान यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।
- पथरदेवा दुर्गा मंदिर देवरिया यह शक्ति उपासना का एक प्रमुख केंद्र है। नवरात्रि के दौरान यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
- देवभूमि देवरिया देवों की नगरी सुप्रसिद्ध स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि आप धार्मिक यात्रा, इतिहास और प्रकृति से जुड़े स्थलों की खोज कर रहे हैं, तो इन स्थानों का दर्शन अवश्य करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें भारतीय हवाटएप्स कालिंग सम्पर्क नम्बर 07379622843 पर।
देवरिया धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ कई प्रसिद्ध मंदिर और आश्रम स्थित हैं, जिनका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। तो आइये क्रमशः बताते हैं महत्वपूर्ण मंदिर और आश्रम को थोड़ा और विस्तार से।
देवरहवा बाबा, मईल, देवरिया: एक चमत्कारी संत और उनकी आध्यात्मिक विरासत
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित देवरहवा बाबा आश्रम (मईल, देवरिया) भारत के प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में से एक है। यह स्थान संत देवरहवा बाबा से जुड़ा हुआ है, जो एक चमत्कारी और सिद्ध पुरुष माने जाते हैं। उनकी तपस्या, समाज सेवा, और चमत्कारी घटनाओं के कारण वे भारत भर में पूजनीय हैं।
देवरहवा बाबा कौन थे?
देवरहवा बाबा को एक अवधूत संत माना जाता है, जो सदियों तक जीवित रहे और अनेक लोगों को आशीर्वाद दिया। वे सिद्ध महायोगी और चमत्कारी संत थे, जिनका जन्म और वास्तविक उम्र आज भी रहस्य बनी हुई है। कहा जाता है कि उन्होंने लगभग 250 से 300 वर्षों तक तपस्या की और अपने अद्भुत ज्ञान से असंख्य भक्तों का मार्गदर्शन किया। एक समय सुखा पड़ा हुआ था गाँव के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे, मईल गाँव के कुछ लोग यहां नदी के किनारे जाकर गंगा मईया से प्रार्थना कर रहे थे कि जल से एक संत का प्राकट्य हुआ।
उन्होंने कहा अपने अपने घर जाओ शिघ्र ही वर्षा होगी उसी दिन अचानक आसमान में बादल छाने लगा और वर्षा होने लगी। पुनः लोग नदी के किनारे आये तो देखा वो संन्यासी नदी के जल से ऊपर निकल रहे हैं। लोगों ने उनका परिचय पुछा लेकिन उन्होंने अपना कोई नाम न होने कि बात कही। देवार स्थित सरयू नदी से प्रकट हुए थे लोगों ने देवरहवा बाबा नाम रखा जो आज भी प्रसिद्ध है। यही देवार स्थित सरयू नदी मे उन्होंने हमेशा एक मचान पर रहकर तपस्या की और आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं तक को आशीर्वाद दिया।
आश्रम और इसका महत्व
(i) आश्रम की स्थापना
देवरहवा बाबा का आश्रम मईल, देवरिया में स्थित है, जिसे उनके भक्तों ने एक धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में विकसित किया है। आश्रम का वातावरण अत्यंत शांत और दिव्य है, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
(ii) आश्रम में प्रमुख आयोजन
गुरुपूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशाल भंडारे और सत्संग होते हैं। प्रतिदिन यहाँ हवन, कीर्तन और सत्संग का आयोजन किया जाता है। यह स्थान साधकों और योगियों के लिए ध्यान और साधना का प्रमुख केंद्र है।
देवरहवा बाबा के चमत्कार
देवरहवा बाबा को अनेक चमत्कारों और दैवीय शक्तियों के लिए जाना जाता है।
(i) जल पर चलने की घटना
बाबा सरयू नदी के जल पर चलकर अपने चमत्कारी सिद्धियों का प्रदर्शन किया करते थे। उन्होंने कभी भी कोई भौतिक वस्तु अपने लिए स्वीकार नहीं की और हमेशा लोगों की सेवा की। सौभाग्यशाली हूं जो मै इनका दर्शन किया करता था और आज अपने जन्मभूमि देवभूमि देवरिया का वर्णन करते हुए दो शब्द लिखने का सौभाग्य हम भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव को देवरहवा बाबा की कृपा से प्राप्त है।
(ii) राष्ट्र नेताओं का संपर्क
पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसे बड़े नेता भी बाबा के दर्शन के लिए आते थे। बाबा ने अनेक नेताओं को देशहित में सही निर्णय लेने की प्रेरणा दी। राममंदिर का ताला खुलवाने के लिए बाबा ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को कहा था। बाबा के आदेश पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित भूमि पर भगवान राम मंदिर का ताला खुलवाया था।
धार्मिक महत्व और भक्तों की आस्था
यह आश्रम न केवल हिंदू भक्तों बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। यहाँ पर बाबा की स्मृति में विशेष पूजा-पाठ होते हैं और श्रद्धालु बाबा से जुड़े अनुभवों को साझा करते हैं। माना जाता है कि आज भी यहाँ आने वाले भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। जब अमिताभ बच्चन मुम्बई हास्पिटल में गंभीर बीमारी का शिकार हो मृत्यु से जूझ रहे थे। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने बिदेशी दौरे को निरस्त कर वापस बाबा के पास आई थी।
बाबा के आशीर्वाद से वो अमिताभ बच्चन जिन्हें डाक्टरों ने स्पष्ट किया था, कि इन्हें बचाया नही जा सकता, उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु को प्राप्त किए। बाबा के आशीर्वाद से एक बड़े सितारा के रूप में अमिताभ ने अपना नाम बालीवुड से रौशन किया। प्रतापगढ़ के जो आज राजा भैया बहुत जानेमाने व्यक्ति बने हैं उनके पिता बाबा के अनुयाई थे बाबा ने ही उनका नाम राजा रखा था। बाबा का आशीर्वाद जिन्हें भी मिला उन सब में बहुतों ने इतिहास रचा।
देवरहवा बाबा स्थान कैसे पहुँचे?
निकटतम रेलवे स्टेशन: सलेमपुर, लार रोड़ और भटनी बरहज रेल मार्ग पर सतरावं और बरहज बाजार रेलवे स्टेशन (आश्रम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर)
सड़क मार्ग: देवरिया और गोरखपुर से मईल तक बस, टैक्सी और निजी वाहन आसानी से उपलब्ध हैं। सलेमपुर तहसील से बरहज तहसील मार्ग पर बठ्ठा चौराहा के समीप मईल गाँव स्थित है जहां थाना क्षेत्र मईल भी है। यहां एक छोटा कस्बा है यही थोड़ी दूर पर सरयू तट पर स्थित देवरहवा बाबा का आश्रम है।
देवरहवा बाबा, मईल (देवरिया) भारत के महान संतों में से एक थे, जिन्होंने योग, ध्यान और समाज सेवा के माध्यम से लाखों लोगों का जीवन बदला। उनका आश्रम आज भी भक्तों की आस्था और आध्यात्मिक साधना का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यदि आप शांति, आस्था और चमत्कारी ऊर्जा का अनुभव करना चाहते हैं, तो मईल स्थित देवरहवा बाबा आश्रम की यात्रा अवश्य करें।
कुंदनपुर (वर्तमान कोड़रा गाँव, मझौली राज, देवरिया): रुक्मिणी का जन्मस्थान
महाभारत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की सबसे प्रिय पत्नी रुक्मिणी का जन्म विदर्भ देश के राजा भीष्मक के यहाँ हुआ था। उनकी नगरी को “कुंदनपुर” कहा जाता था। कई मान्यताओं के अनुसार, उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित कोड़रा गाँव (मझौली राज के निकट, दिग्वेश्वरनाथ मंदिर के पास) ही प्राचीन कुंदनपुर था।
कुंदनपुर का पौराणिक संदर्भ
(i) महाभारत में कुंदनपुर
रुक्मिणी विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं, जो अद्वितीय सौंदर्य और गुणों से युक्त थीं। उनके भाई रुक्मी चाहते थे कि उनकी शादी चेदिराज शिशुपाल से हो, लेकिन रुक्मिणी ने भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में चुना। रुक्मिणी जन्मों जन्म भगवान विष्णु की पत्नी बनना चाहती थी। विष्णु अवतार भगवान राम ने रुक्मिणी को पातालोक मे अहिरावण से मुक्ति का मार्ग और अहिरावण वध का राज हनुमानजी को बंदी गृह मे बताने के कारण वरदान दिए थे – अगले श्रीकृष्ण अवतार मे सबसे प्रिय रानी के रूप में पत्नी बनेंगीं।
उसी रामअवतार मे दिए नाग कन्या को वरदान स्वरूप सबसे प्रिय रानी बनीं। जब उनके विवाह का विचार शिशुपाल से राजा ने करना चाहा तब रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को गुप्त रूप से एक संदेश भेजा, जिसमें उनसे आकर उनका हरण करने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने कुंदनपुर आकर रुक्मिणी का हरण किया और भाई रुक्मी को युद्ध में नदावरघाट पर हरा गंधर्व विवाह किया और उन्हें द्वारका ले गए।
(ii) वर्तमान कोड़रा गाँव की पहचान
विदर्भ की राजधानी कुंदनपुर की सही स्थिति को लेकर मतभेद हैं, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताओं और ऐतिहासिक संकेतों के आधार पर देवरिया जिले का कोड़रा गाँव ही प्राचीन कुंदनपुर माना जाता है। यह गाँव दिग्वेश्वरनाथ शिव मंदिर (मझौली राज) के निकट स्थित है, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।
दिग्वेश्वरनाथ मंदिर और कुंदनपुर का संबंध
दिग्वेश्वरनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जो मझौली राज क्षेत्र में स्थित है। एक समय रुक्मिणी इस शिव मंदिर में पूजा अर्चना कर रही थीं तभी बाणासुर रुक्मिणी का हरण करने का विचार बना मंदिर पर हमला कर दिया। रुक्मिणी मंदिर में अंदर से दरवाज़ा बंद कर श्री कृष्ण से रक्षा कि गुहार लगाने लगी तभी श्रीकृष्ण और बलराम वहां आकर मंदिर का मुकुट काटकर रुक्मिणी का हरण कर ले गए यह सूचना बाणासुर राजा विदर्भ नरेश भीष्मक को दिया। राजा के आज्ञा से भ्राता रुक्मी श्रीकृष्ण से युद्ध के लिए निकल पड़े।
श्रीकृष्ण ने युद्ध मे उल्टा मुशुक बांध यहीं नदावरघाट छोड़ रुक्मिणी को ले चले गए। श्रीकृष्ण ने कहा रिश्ते में साले हो इस लिए मार सकता, युद्ध के लिए आये हो इस लिए छोड़ नही सकता। यही कारण था श्रीकृष्ण रुक्मी का वध नही किये। कहा जाता है कि रुक्मिणी और श्रीकृष्ण ने यहाँ भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह स्थान महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और स्थानीय लोग इसे रुक्मिणी विवाह स्थल के रूप में भी मानते हैं।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
यदि कोड़रा गाँव वास्तव में कुंदनपुर था, तो यह महाभारत काल का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। यह स्थान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की गाथा से जुड़ा होने के कारण हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में उभर सकता है। यहाँ की धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक प्रमाणों को संरक्षित करना आवश्यक है, ताकि यह स्थल अपनी महाभारत कालीन पहचान बनाए रखे। यहां चिरंजीवी अश्वत्थामा आज भी शिव की प्रथम पूजा-अर्चना करते हैं।
यहां कैसे पहुँचे?
निकटतम रेलवे स्टेशन: सलेमपुर और भाटपार रानी रेलवे स्टेशन।
सड़क मार्ग: देवरिया और गोरखपुर से मझौली राज और कोड़रा गाँव तक बस, टैक्सी और निजी वाहनों से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
कोड़रा गाँव (मझौली राज, देवरिया) को प्राचीन कुंदनपुर के रूप में मान्यता मिलने से यह स्थान महाभारत से जुड़ा एक महत्वपूर्ण स्थल बन सकता है। दिग्वेश्वरनाथ शिव मंदिर के समीप स्थित यह गाँव श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की प्रेम गाथा का साक्षी माना जाता है। यदि भविष्य में इस स्थान पर ऐतिहासिक और पुरातात्विक अनुसंधान किए जाएँ, तो इसकी प्राचीनता को और अधिक प्रमाणित किया जा सकता है।

दिग्वेश्वरनाथ शिव मंदिर, मझौली राज, देवरिया: चिरंजीवी अश्वत्थामा का निवास स्थान
उत्तर प्रदेश के Deoria देवरिया जिले में मझौली राज के निकल स्थित दिग्वेश्वरनाथ शिव मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर न केवल भगवान शिव की आराधना का प्रमुख केंद्र है, बल्कि इसे महाभारत के महान योद्धा अश्वत्थामा का निवास स्थान भी माना जाता है।
मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
दिग्वेश्वरनाथ मंदिर की स्थापना का सटीक विवरण अज्ञात है, लेकिन मान्यता है कि यह मंदिर सदियों पुराना है और इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण अश्वत्थामा से जुड़ी किंवदंतियाँ हैं।
(i) अश्वत्थामा की उपस्थिति
मान्यता है कि महर्षि द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, जिन्हें चिरंजीवी (अमर) माना जाता है, आज भी इस मंदिर में आते हैं। कहा जाता है कि वे हर रात मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और सुबह होने से पहले ही अदृश्य हो जाते हैं। कई श्रद्धालुओं और पुजारियों ने अनुभव किया है कि मंदिर के गर्भगृह में सुबह जल चढ़ा हुआ मिलता है, जिससे यह विश्वास और गहरा हो जाता है कि अश्वत्थामा स्वयं यहाँ पूजा करते हैं।
(ii) शिव जी की विशेष पूजा
मंदिर में शिवलिंग अत्यंत प्राचीन और स्वयंभू माने जाते हैं।यहाँ महाशिवरात्रि और सावन महीने में विशेष पूजा होती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।
मंदिर का वास्तु और संरचना
दिग्वेश्वरनाथ मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक हिंदू मंदिरों की शैली में बनी हुई है। इसमें प्रमुख रूप से – मुख्य शिवलिंग गर्भगृह में स्थित है। नंदी की मूर्ति शिवलिंग के सामने रखी गई है। अनेक छोटे मंदिर परिसर में मौजूद हैं, जो अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। पवित्र कुंड और पेड़ जिनके बारे में मान्यता है कि इनका संबंध प्राचीन काल से है।
धार्मिक महत्व और श्रद्धालुओं की आस्था
स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि यहाँ सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य फलदायी होती है। चिरंजीवी अश्वत्थामा की उपस्थिति इस स्थान को और भी पवित्र बना देती है। इस मंदिर में आने वाले भक्त रोग, कष्ट और बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुँचें?
यह मंदिर देवरिया जिले के मझौली राज क्षेत्र में स्थित है।निकटतम रेलवे स्टेशन सलेमपुर और भाटपार रानी है। मंदिर तक गोरखपुर और देवरिया से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
दिग्वेश्वरनाथ शिव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अश्वत्थामा के निवास स्थान के रूप में इसकी पहचान इसे और भी रहस्यमयी और महत्वपूर्ण बना देती है। यहाँ की दिव्यता, मान्यताएँ और शिव भक्ति इसे एक अद्वितीय तीर्थ स्थल बनाते हैं। यदि आप कभी देवरिया आएँ, तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें और इसके रहस्यमयी और दिव्य वातावरण का अनुभव करें।
सोहनपुर (प्राचीन शोणितपुर) और बाबा हंसनाथ शिव मंदिर, सोहगरा धाम: बाणासुर और शिव भक्ति का पवित्र स्थल
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित सोहनपुर और सोहगरा धाम का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह क्षेत्र महाबली बाणासुर की राजधानी शोणितपुर के रूप में प्रसिद्ध था। इसके साथ ही, बाबा हंसनाथ शिव मंदिर, सोहगरा धाम में भगवान शिव को बाणासुर के सेनापति और नाथ संप्रदाय की सिद्ध भूमि माना जाता है।
सोहनपुर (प्राचीन शोणितपुर) और बाणासुर
(I) शोणितपुर: बाणासुर की नगरी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शोणितपुर दैत्यराज बाणासुर की राजधानी थी। बाणासुर राजा बलि का पुत्र और भगवान शिव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर हजारों भुजाएँ प्राप्त कीं और एक शक्तिशाली योद्धा बना। कहा जाता है कि जब अनिरुद्ध (भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र) और बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह हुआ, तब श्रीकृष्ण और बाणासुर के बीच एक महायुद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने बाणासुर की अधिकतर भुजाएँ काट दीं, लेकिन भगवान शिव के अनुरोध पर उसे जीवित छोड़ दिया और शोणितपुर में ही रहने का वरदान दिया।
(ii) आधुनिक सोहनपुर और इसकी पहचान
यह क्षेत्र आज भी पौराणिक शोणितपुर के अवशेषों को संजोए हुए है। यहाँ कई प्राचीन शिव मंदिर और अवशेष मिलते हैं, जो इस स्थान की पौराणिकता को सिद्ध करते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहाँ अब भी बाणासुर की शक्ति का प्रभाव बना हुआ है।
बाबा हंसनाथ शिव मंदिर, सोहगरा धाम
शिव भक्ति और नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थल सोहगरा धाम को नाथ संप्रदाय और शिव भक्ति का पवित्र स्थान माना जाता है। यह शिव मंदिर बाबा हंसनाथ के नाम से जाना जुड़ा हुआ है, जो बाणासुर के सेनापति थे। यहाँ के शिवलिंग को अति प्राचीन और स्वयंभू माना जाता है, जिसकी पूजा सदियों से होती आ रही है। यह शिव मंदिर उत्तर प्रदेश और बिहार कि सीमारेखा निर्धारित करता है।
मंदिर की विशेषताएँ
मंदिर का वातावरण सिद्ध योगियों और साधुओं की तपस्या स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ शिवरात्रि, सावन और अन्य धार्मिक अवसरों पर विशेष आयोजन होते हैं। भक्त यहाँ आकर मोक्ष, शांति और कष्टों से मुक्ति की कामना करते हैं।
चमत्कारी मान्यताएँ
कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की आराधना से विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। स्थानीय कथाओं के अनुसार, यहाँ रात के समय अलौकिक शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
सोहनपुर (शोणितपुर) और सोहगरा धाम का संबंध महाभारत, पुराणों और नाथ संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। यह स्थान भगवान शिव, बाणासुर, श्रीकृष्ण और नाथ योगियों की अद्भुत गाथाओं को अपने अंदर समेटे हुए है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु शक्ति, भक्ति और शांति की अनुभूति करते हैं।
कैसे पहुँचे?
निकटतम रेलवे स्टेशन: बनकटा, भाटपार रानी और सलेमपुर सदर रेलवे स्टेशन। देवरिया से सोहनपुर और सोहगरा धाम तक बस, टैक्सी और निजी वाहनों से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सोहनपुर (प्राचीन शोणितपुर) बाणासुर की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध है, जबकि बाबा हंसनाथ शिव मंदिर, सोहगरा धाम, बाणासुर के सेनापति, शिव भक्ति और नाथ संप्रदाय की सिद्ध भूमि मानी जाती है। ये दोनों स्थल धार्मिक आस्था, पौराणिक मान्यताओं और ऐतिहासिक धरोहरों का अनूठा संगम हैं। यदि आप देवरिया के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करना चाहते हैं, तो सोहनपुर और सोहगरा धाम अवश्य आएँ।
देवरही माता मंदिर, देवरिया: आस्था और शक्ति का पावन स्थल
देवरिया सदर रेलवे स्टेशन के निकट स्थित देवरही माता मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और शक्ति का एक प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर को माँ दुर्गा के एक दिव्य रूप से जोड़ा जाता है, और यहाँ प्रतिवर्ष हजारों भक्त माँ के दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि माता देवरही अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी करती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजन, हवन और भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंदिर का वातावरण अत्यंत शांत, आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर है, जो भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
लाहिपार देवी मंदिर, देवरिया: शक्ति उपासना का प्राचीन केंद्र
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित लाहिपार देवी मंदिर एक प्राचीन और सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों पुराना है और यहाँ माँ दुर्गा की कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यह स्थल तपस्वियों और साधकों की साधना भूमि रहा है, जहाँ माँ भगवती ने अपनी दिव्य शक्ति का प्राकट्य किया था। मंदिर की वास्तुकला और पवित्रता इसे एक विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करती है।
नवरात्रि और अन्य प्रमुख त्योहारों पर यहाँ विशाल भंडारे, जागरण और हवन का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। यह मंदिर आस्था, भक्ति और ऐतिहासिक महत्ता का अद्भुत संगम है, जो हिंदू धर्म में शक्ति साधना की परंपरा को दर्शाता है।
खोरीबारी रामपुर मंठिया देवी मंदिर, भटनी, देवरिया: शक्ति उपासना का पवित्र स्थान
उत्तर प्रदेश के Deoria जिले के भटनी क्षेत्र में स्थित खोरीबारी रामपुर मंठिया देवी मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर माँ दुर्गा के एक शक्तिशाली रूप को समर्पित है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं और माँ की कृपा प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है और इसकी पुनर्स्थापना मंदिर के मुख्य पुजारी मुद्रिका यादव द्वारा कराया गया है। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा-अर्चना, हवन और भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होते हैं।
मंदिर का शांत और दिव्य वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, जिससे यह स्थान शक्ति साधना और भक्ति का प्रमुख केंद्र बन गया है।
हनुमान मंदिर, देवरिया: भक्ति और शक्ति का प्रतीक
देवरिया जिले के कस्बा गाँव स्थित जगह-जगह हनुमान मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का एक प्रमुख केंद्र है। यहां मंदिर भगवान हनुमान जी को समर्पित है, जिन्हें संकटमोचक और अडिग भक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यहाँ आने वाले भक्तों की सभी परेशानियाँ दूर होती हैं और उन्हें मानसिक शांति एवं शक्ति प्राप्त होती है। मंदिर में हर मंगलवार और शनिवार को विशेष हनुमान चालीसा पाठ, सुंदरकांड पाठ और भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ विशाल भक्ति समारोह आयोजित होता है। मंदिर का शांत वातावरण, गूंजते हुए मंत्रों की ध्वनि और भक्तों की अपार श्रद्धा आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर एक पवित्र स्थल बनाते हैं।
दुर्गा देवी मंदिर अहियापुर Deoria
यह मंदिर 108 शक्तिपीठों में अंकित है देवी दुर्गा का मंदिर जब अग्रेजी हुकुमत मे रेलमार्ग का निर्माण हो रहा था दिन में इस स्थान से होकर रेल पटरी बिछाई जाती थी रात को सब उखड़ फेक जाता था। यह क्रम कईयों दिन चला फिर देवी ने सुबेदार को सपने में स्पष्ट किया यह हमारी शक्तिपीठ स्थल है यहा से हटकर कार्य संपन्न होना चाहिए तब वहां मंदिर का निर्माण हुआ और थोड़ी दूर से रेलमार्ग का कार्य किया गया। यह स्थान नुनखारा अहियापुर रेलवे स्टेशन के बीच में स्थित है।
बालाजी मंदिर सदर देवरिया
यह मंदिर बालाजी को समर्पित है यह शहर के निकट सदर रेलवे स्टेशन देवरिया के पास होने के कारण यहां भारी भरकम भीड़ होती रहती है। यहां संध्या काल मे आरती किर्तन होता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर भव्य समारोह आयोजित किया जाता है।
रामजानकी मंदिर, महुआडीह देवरिया
यह मंदिर भगवान राम और माता सीता को समर्पित है और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है।
दुर्गा मंदिर, रुद्रपुर देवरिया
यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और नवरात्रि के समय यहाँ विशेष आयोजन होते हैं।
शिव मंदिर, बैतालपुर देवरिया
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशेष आयोजन होते हैं।
सांस्कृतिक और लोक परंपराएँ
देवरिया की लोकसंस्कृति समृद्ध और विविधतापूर्ण है। यहाँ की प्रमुख परंपराओं में नौतंकियां, रामलीला, कठपुतली नृत्य और लोकगीत (जैसे कजरी और बिरहा) शामिल हैं। छठ महोत्सव यहाँ बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मेला और जत्राएँ धार्मिक अवसरों पर आयोजित होती हैं। लोकनृत्य और संगीत ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
आधुनिक देवरिया
आज देवरिया एक महत्वपूर्ण कृषि और व्यापारिक केंद्र है। यहाँ की मुख्य फसलें गन्ना, धान, गेहूं और दलहन हैं। इस जनपद में चीनी मिल सबसे अधिक था किन्तु धीरे-धीरे राजनीतिक दलों ने बंद करा दिया। औद्योगिकीकरण धीरे-धीरे बढ़ रहा था, लेकिन भाजपा शासनकाल में सब स्थिति चौपट हो गई है। यह क्षेत्र अभी भी कृषि प्रधान है।
(i) शिक्षा और विकास
देवरिया में कई विद्यालय, महाविद्यालय और तकनीकी संस्थान पुराने समय से ही स्थापित हैं। फिर भी यहाँ के छात्र गोरखपुर और वाराणसी जैसे शहरों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं। विकास के नाम पर वास्तविक रूप से यह क्षेत्र पिछड़ा क्षेत्र की श्रेणी में ही है।
(ii) यातायात और कनेक्टिविटी
यह जिला सड़क और रेलवे नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। बिहार से निकटता होने के कारण यहाँ व्यापार और रोजगार के अवसर बढ़े हैं। जैसे कि बिहार में शराब बंदी है और यहां से बिहार को शराब का खेप पहुंचाने का काम बेरोजगार युवाओं को मिलता रहता है। जो बिहार में जाकर महंगी दामों बेची जाती है। बडे-बडे ठेकेदारों के संरक्षण में बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलता है।
देवरिया केवल एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध जिला है। यहाँ की धार्मिक मान्यताएँ, ऐतिहासिक स्थल और लोक परंपराएँ इसे उत्तर प्रदेश का एक अनोखा जिला बनाती हैं। देवों की इस नगरी का महत्व प्राचीन काल से लेकर आज तक बरकरार है, और यह आगे भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखेगा। Click on the link गूगल ब्लाग पर अपनी पसंदीदा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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हरि ओम
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