अरे फेकू भाई! तूने तो वो वायरल ट्वीट पकड़ लिया, जिसमें लिखा है – “2014 से 2024 तक मात्र 15,77,256 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है, 2025 में और 2 लाख हो सकता है। भारत कर्ज, और पलायन में न.1″। हाहा, मानो तूने कोई पॉलिटिकल मसाला न्यूज़ का हेडलाइन पकड़ लिया सब नेहरु की देन है – ‘भारत छोड़ो 3.0: अबकी बार, विदेशी पासपोर्ट पार!’। गांधीजी का आंदोलन तो अंग्रेजों को भगाने के लिए था, लेकिन अब तो हमारे IITians, IIMites, और UPSC टॉपर्स ‘विकास’ के जश्न में ‘फ्लाइट मोड’ ऑन करके कनाडा, दुबई, और अमेरिका की टिकट बुक कर रहे हैं।
सत्यता क्या है? चल, फेकू भाई, आज हम एक कटाक्षपूर्ण, पॉलिटिक्स का रोलर-कोस्टर राइड लेते हैं, जहां आंकड़े डिस्को करेंगे, सरकार ‘विकास’ का ढोल पीटेगी, और तेरा पेट हंसते-हंसते हिंडोला मारेगा। यह लेख डाटाबेस पर आधारित किंतु व्यंग्यात्मक होगा, ताकि सरकार के ‘विशाल’ फेक वादों की तरह नही बल्कि हर पैराग्राफ भारी-भरकम लगे। सीट बेल्ट बांध, क्योंकि ये फ्लाइट ‘न्यू इंडिया’ से ‘न्यू यॉर्क’ जा रही है – पासपोर्ट भारतीय, लेकिन सपने ‘ग्लोबल सिटिजन’!
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भाग 1: ‘मात्र’ का मायाजाल और सरकार का ‘विकास’ ड्रामा – आंकड़ों का गोलमाल
फेकू भाई, सबसे पहले उस ट्वीट के ‘मात्र’ शब्द पर गौर फरमाओ। “मात्र 15,77,256” लोग – मानो ये कोई छोटा-मोटा आंकड़ा हो, जैसे दिल्ली मेट्रो में रोज का फुटफॉल या फिर किसी रैली में जुटाई गई भीड़। लेकिन सत्य की खोज में थोड़ा गहराई में उतरते हैं। मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स (MEA) के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2024 तक भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या ‘मात्र’ नहीं, बल्कि करीब 20 लाख से ज्यादा है!
चल, डिटेल्स देख: 2014 में 1,29,328, 2015 में 1,31,272, 2016 में 1,41,603, 2017 में 1,33,049, 2018 में 1,34,561, 2019 में 1,44,017, 2020 में 85,256 (कोविड ने थोड़ा ब्रेक लगाया, वरना तो रिकॉर्ड टूटता), 2021 में 1,63,370, 2022 में 2,25,620, 2023 में 2,16,219, और 2024 में 2,06,378 (अक्टूबर तक)। जोड़ लो, फेकू, कुल 18-20 लाख के आसपास। ट्वीट का 15 लाख वाला आंकड़ा शायद पुराना है, या फिर सरकार ने ‘मात्र’ में गोलमाल कर दिया – जैसे बजट में ‘अनुमानित’ खर्चे जो बाद में दोगुने हो जाते हैं।
अब व्यंग्य का मसाला देख फेकू: सरकार इसे “व्यक्तिगत कारण” कहती है। अरे फेकू भाई, तू तो दूर तक गिंधो जैसा देखता है रे, इसलिए दूर-दूर तक फेंकता भी है। लेकिन हम निस्पक्ष लेखक तथ्यों के आधार पर गहन विश्लेषण करते हैं, इसलिए गोदीमीडिया से अलग सत्य दिखाते और बताते हैं। अरे फेकू भाई खाली झोला लेकर आया और 70 साल तो बहुत दूर 14 साल मे ही देश का सारा सोना ही हजम कर आठ गुना रेट दिखा दिया। 24 घंटे में दो मिनट भी समय देकर सोच गरीब घरों की बेटियों को सोने का जेवर पहन पाना क्या अब मुमकिन रह गया है।
अगर 20 लाख लोग एक साथ ‘पर्सनल’ हो जाएं, तो ये ‘पर्सनल’ नहीं, ‘नेशनल पलायन उत्सव’ है! कल्पना कर, फेकू, एक पूरा क्रिकेट स्टेडियम खाली, और सब न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में ‘न्यू इंडिया’ का गुणगान करते हुए सेल्फी ले रहे हैं। सरकार कहती है, “ये तो अमृत काल है!” हां, अमृत तो मीठा होता है, लेकिन ये पलायन का स्वाद कड़वा क्यों लग रहा है? शायद इसलिए कि सरकार का ‘विकास’ का ढोल इतना जोर से बजता है कि लोग डर के मारे विदेश भाग रहे हैं – ढोल की थाप से बचने के लिए!
और हंस, फेकू, क्योंकि अगर ये 20 लाख लोग यहीं रहते, तो दिल्ली का ट्रैफिक जाम और लंबा, आधार कार्ड की लाइन और लंबी चौड़ी, और वोटिंग बूथ पर ‘कृपया इंतजार करें’ का बोर्ड लगाना पड़ता। लेकिन अब वो विदेश में हैं, डॉलर कमा रहे हैं, और भारत को रेमिटेंस भेज रहे हैं – 2024 में 125 बिलियन डॉलर, दुनिया में नंबर वन! व्यंग्य ये कि सरकार ‘रेमिटेंस’ का गुणगान करती है, लेकिन ये भूल जाती है कि ये डॉलर उन लोगों के हैं, जिन्हें ‘न्यू इंडिया’ में जगह नहीं मिली। ये तो ‘ब्रेन ड्रेन’ नहीं, ‘ब्रेन जेट’ है – प्राइवेट जेट से सीधे सिलिकॉन वैली, और सरकार पीछे से ताली बजा रही है, “वाह, हमारा डायस्पोरा!”।

भाग 2: पलायन में नंबर वन – सरकार का ‘ग्लोबल इंडिया’ या ‘ग्लोबल एग्जिट’?
ट्वीट का दूसरा हिस्सा: “#भारत … पलायन में नंबर 1″। सत्य? बिल्कुल सही! 2024 में भारत के 18.5 मिलियन प्रवासी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं – ग्लोबल माइग्रेंट्स का 6%! यूएई और अमेरिका में 17-17% भारतीय, सऊदी में भी लाखों। लेकिन व्यंग्य का मसाला कहां? फेकू भाई, सरकार कहती है, “हम ग्लोबल पावर हैं!” हां, पावर तो बन गए, लेकिन ‘पलायन पावर’। हम न क्रिकेट में नंबर वन, न हॉकी में, न ओलंपिक में – लेकिन ‘पलायन प्रीमियर लीग’ में गोल्ड मेडल पक्का। यही तो है फेकू तेरा विकास — भारत में जन्म, पढ़ाई, और फिर ‘वर्क परमिट’ की रेस।
कल्पना कर, फेकू, एक देश जहां बच्चा पैदा होते ही CV तैयार करता है – “B.Tech, IELTS 8.0, कनाडा वीजा रेडी”। क्यों? क्योंकि सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ तो पोस्टरों में चमकता है, लेकिन ‘लिव इन इंडिया’ का ऑप्शन वैकल्पिक है। IIT से ग्रेजुएट हो, तो गूगल जॉब के लिए कनाडा; IIM से MBA, तो वॉल स्ट्रीट। और जो रह गए? वो ट्विटर पर ‘वंदे मातरम’ चिल्लाते हैं, लेकिन सपने में ‘कनाडा मातरम’ गाते हैं।
पलायन का इतिहास पुराना है, फेकू सब नेहरू की पालिसी है। 19वीं सदी में ब्रिटिश ने हमें इंडेंटर्ड लेबर बनाकर भेजा, अब सरकार का ‘नया भारत’ हमें ‘गोल्डन वीजा’ के पीछे भेज रहा है। 2024 में अक्टूबर तक 3.2 लाख ने नागरिकता छोड़ी और 2025 का अनुमान? 2 लाख से ज्यादा, क्योंकि ट्रेंड तो ‘वायरल’ है।
फेकू जरा सोच, अगर इंडियन क्रिकेट टीम के 11 खिलाड़ी भाग जाएं, तो सरकार क्या करेगी? शायद स्टेडियम में रैली बुलाए और कहे, “ये तो हमारा ग्लोबल डायस्पोरा है!” सरकार का दावा है, “डायस्पोरा हमारा गर्व है”। अरे, गर्व तो ठीक, लेकिन ये डायस्पोरा तो रिमोट से कंट्रोल होता है – बटन दबाओ, रेमिटेंस आ गया। और मजा लो, फेकू – पंजाब और गुजरात हैं पलायन के ‘सुपरस्टार्स’। पंजाबी भाई कनाडा में ट्रक ड्राइवर से मालिक बन जाते हैं, गुजराती भाई दुबई में ‘बिजनेस टाइकून’।
दिल्ली तो टॉप पर – 60,414 ने छोड़ी! क्यों? क्योंकि दिल्ली में तो प्रदूषण, ट्रैफिक, और ‘VIP कल्चर’ में फंसते, अब तो न्यूजीलैंड के फार्म में ‘ऑर्गेनिक’ जिंदगी जीते। सरकार कहती है, “हम सॉफ्ट पावर हैं”। हां, सॉफ्ट पावर तो है – योग, करी, और बॉलीवुड विदेश में, लेकिन लोग? वो तो OCI कार्ड लेकर ‘टूरिस्ट’ बनकर लौटते हैं। व्यंग्य ये कि सरकार ‘प्रवासी भारतीय सम्मेलन’ बुलाती है, लेकिन सम्मेलन में आने वाले ज्यादातर लोग वो हैं, जिन्होंने भारत को ‘वेकेशन डेस्टिनेशन’ बना लिया है।
भाग 3: कर्जदार भारत – सरकार का ‘विकास’ कर्ज और EMI का खेल
अब ‘@भारत कर्जदार’ की बारी। सत्य? 2024 में डेट-टू-जीडीपी रेशियो 81.92%, सेंट्रल गवर्नमेंट का 57.2%। एक्सटर्नल डेट? 57.49 लाख करोड़! लेकिन व्यंग्य का मसाला ये कि सरकार कर्ज को ‘विकास का डबल इंजन’ कहती है – रोड, ब्रिज, मेट्रो, और ‘स्मार्ट सिटी’। अरे, फेकू, अगर 20 लाख लोग भाग रहे हैं, तो ये स्मार्ट सिटी किसके लिए? उनके लिए जो रह गए, या जो भाग गए? कल्पना कर, एक पिता कर्ज लेकर घर बनाता है, लेकिन बेटा अमेरिका चला जाता है। EMI पिता भरेगा, किराया बेटा भेजेगा।
सरकार कहती है, “हम रेमिटेंस में नंबर वन हैं” – 125 बिलियन डॉलर! लेकिन ये भूल जाती है कि ये रेमिटेंस उन लोगों का है, जिन्हें ‘न्यू इंडिया’ में नौकरी नहीं मिली। ये तो ‘बॉरो एंड लेंड’ का चक्रव्यूह है, जहां सरकार कर्ज लेती है, लोग भागते हैं, और फिर वही लोग रेमिटेंस भेजकर सरकार की पीठ ठोकते हैं। सरकार का दावा है, “फिस्कल डिसिप्लिन”। लेकिन हर बजट में कर्ज बढ़ता है – 2025-26 में 56.1% अनुमानित।
फेकू, अगर कर्ज इतना अच्छा है, तो क्यों न हर नागरिक को 1 लाख का लोन दे दें? आधार से लिंक करो, EMI शुरू। शायद पलायन रुक जाए, क्योंकि कर्ज चुकाने के लिए तो रहना पड़ेगा। लेकिन सरकार का नया स्कीम? “कर्ज लो, देश छोड़ो!” तेरे विरादरी भाई निरव मोदी, अहाहा, और सोच, फेकू, सरकार हर रैली में कहती है, “हम 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनेंगे!” लेकिन अगर लोग ही भाग गए, तो इकॉनमी कौन चलाएगा? शायद वो डिजिटल इंडिया वाला रोबोट, जो आधार कार्ड स्कैन करके टैक्स वसूल करेगा। तेरा पेट तो अब तक हिंडोला मार रहा होगा!

भाग 4: क्यों भाग रहे हैं? सरकार के ‘पर्सनल रीजन्स’ का पॉलिटिकल पर्दाफाश
चल, फेकू, अब असली सवाल – क्यों भाग रहे हैं ये 20 लाख? सरकार का जवाब— “पर्सनल रीजन्स”। अरे, इतने पर्सनल रीजन्स कि पूरा देश पर्सनल हो गया। सत्य? इंडियन पासपोर्ट 70वें नंबर पर – 125 देशों में वीजा चाहिए। अमेरिका का 5वें पर। यहां प्रदूषण (AQI 300+), ट्रैफिक, और यूथ अनएम्प्लॉयमेंट 23%। वहां? क्लीन एयर, हाईवे, और जॉब्स। सरकार कहती है, “हमने 6 करोड़ नौकरियां बनाईं!” हां, लेकिन ज्यादातर तो ‘पकौड़ा स्टार्टअप’ और ‘स्विगी डिलीवरी’। IIT से B.Tech करके गूगल में जॉब, IIM से MBA करके वॉल स्ट्रीट।
और जो रह गए? वो ट्विटर पर ‘विकास’ की तारीफ करते हैं, लेकिन रात को सपने में ‘कनाडा PR’ की वेबसाइट खोलते हैं। 2025 में 2 लाख और? हां, क्योंकि कनाडा, यूएस, ऑस्ट्रेलिया के प्रोग्राम्स ‘माइग्रेंट्स वेलकम’ चिल्ला रहे हैं। व्यंग्य— सरकार OCI देती है – ‘ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया’। मतलब, नागरिकता छोड़ो, लेकिन दीवाली पर लौट आना। जैसे ब्रेकअप के बाद भी ‘फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स’।
सरकार का दावा है, “हम युवा भारत हैं!” हां, लेकिन युवा तो विदेश में हैं, और यहां बचे हैं वो, जो UPSC की कोचिंग में ‘मोटिवेशनल स्पीच’ सुन रहे हैं। हंस, फेकू, क्योंकि सरकार कहती है, “हम सुपरपावर बन रहे हैं!” लेकिन अगर लोग ही भाग गए, तो सुपरपावर कौन बनेगा? शायद वो डिजिटल अवतार, जो ‘वंदे भारत’ ट्रेन में बैठकर ट्वीट करेगा।
भाग 5: क्लाइमेक्स – सरकार का ‘सब चंगा सी’ और पलायन का पॉलिटिकल पंच
फेकू भाई, सत्य ये कि पलायन में नंबर वन, कर्ज में टॉप, लेकिन भारत की जीडीपी 3.7 ट्रिलियन! सरकार कहती है, “हम विश्व गुरु बन रहे हैं!” लेकिन व्यंग्य ये कि विश्व गुरु के शिष्य तो विदेश भाग रहे हैं। समाधान? ड्यूल सिटिजनशिप? अरे, तब तो और भागेंगे, क्योंकि ‘सेफ्टी नेट’ मिलेगा। या ‘पलायन टैक्स’ – विदेश जाओ, 10% सैलरी भारत को। लेकिन सरकार तो पहले ही रेमिटेंस से खुश है।
अंत में, फेकू, ये ट्वीट सही है, लेकिन अधूरा। भारत कर्जदार है, और पलायन में नंबर वन, लेकिन सरकार के लिए ‘सब चंगा सी’। हमारी संस्कृति फैल रही, डॉलर आ रहे। तो हंसो, रोओ, लेकिन रहो – क्योंकि अगर सब भाग गए, तो सरकार की रैलियों में फेंक भाषणबाजी पर ताली कौन बजाएगा? और हां, फेकू, अगली बार जब ट्वीट देखें, तो पूछना, “सुना है कि सरकार का नया नारा है – ‘न्यू इंडिया, न्यू पासपोर्ट’!”

(नोट: amitsrivastav.in पर लेखक संपादक अमित श्रीवास्तव द्वारा लिखित यह लेख व्यंग्य पर आधारित है, लेकिन आंकड़े सत्य पर आधारित है। स्रोत: — MEA, वर्ल्ड बैंक, आदि।)
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