पहलगाम मे 28 हिंदुओं कि जघन्य हत्या —क्यों नही हो रहा सर्जिकल स्ट्राइक

Amit Srivastav

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पहलगाम मे 28 हिंदुओं कि जघन्य हत्या धारा 370 कश्मीर मुद्दा, आतंकवाद के खिलाफ

पहलगाम, जम्मू-कश्मीर में 22 अप्रैल 2025 को हुआ आतंकी हमला, जिसमें 28 मासूम हिंदुओं को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया गया, न केवल एक त्रासदी है, बल्कि भारत की केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार की नाकामी और कायरतापूर्ण चुप्पी का जीता-जागता सबूत है। आतंकियों ने नाम और धर्म पूछकर हिंदू पर्यटकों को चुन-चुनकर मारा, और फिर भी सरकार खामोश तमाशबीन बनी हुई है।

यह नरसंहार देश के बहुसंख्यक समाज के खिलाफ खुला युद्ध है, और बीजेपी सरकार की ढुलमुल नीतियों, खुफिया तंत्र की विफलता, और जवाबी कार्रवाई में देरी ने जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। राष्ट्रपति शासन लागू करने की हिम्मत न दिखाना, आतंकियों के खिलाफ तत्काल सैन्य कार्रवाई न करना, और इस घृणित अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा न देना—यह सब सरकार की नीयत और राजनीति पर सवाल उठाता है।

यह खबर जनहित को सर्वोपरि रखते हुए, सरकार की लापरवाही और कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद के खिलाफ जवाबदेही तय करता है।

पहलगाम मे 28 हिंदुओं कि जघन्य हत्या —क्यों नही हो रहा सर्जिकल स्ट्राइक

पहलगाम 28 हिंदुओं की हत्या – सरकार की आपराधिक चुप्पी और खोखले वादे

पहलगाम के बैसरन घास के मैदानों में हुए इस हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। आतंकियों ने निहत्थे पर्यटकों पर गोलियां बरसाईं, बच्चों और महिलाओं को नहीं बख्शा, और धर्म के आधार पर हत्याएं कीं। यह कोई सामान्य आतंकी घटना नहीं, बल्कि हिंदू समुदाय के खिलाफ सुनियोजित नरसंहार था। फिर भी, बीजेपी सरकार ने इस जघन्य अपराध पर सिर्फ ट्वीट और निंदा तक खुद को सीमित रखा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की ओर से आए बयान महज औपचारिकताएं हैं, जिनमें न तो गुस्सा है, न ही आतंकियों को सबक सिखाने का संकल्प। क्या यही है वह “56 इंच का सीना” जिसका दावा बीजेपी करती रही है? क्या यही है वह “आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” की नीति, जिसका ढोल पीटा जाता है?

जनता पूछ रही है कि जब 28 मासूमों का खून बहाया गया, तब सरकार क्यों सो रही थी? क्यों नहीं तुरंत सर्जिकल स्ट्राइक या बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया गया? यह चुप्पी सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि देश के बहुसंख्यक समाज के साथ विश्वासघात है।

पहलगाम सहित कश्मीर में खुफिया तंत्र की विफलता और सरकार की नाकामी

इस हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत का खुफिया तंत्र पूरी तरह चरमरा चुका है। आतंकी इतनी बड़ी साजिश रचते हैं, हथियार जुटाते हैं, और पर्यटक स्थल तक पहुंच जाते हैं, लेकिन सरकार को भनक तक नहीं लगती। यह खुफिया विफलता नहीं, बल्कि आपराधिक लापरवाही है। बीजेपी सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद दावा किया था कि कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो जाएगा, लेकिन पहलगाम का यह हमला उनके सारे दावों की पोल खोलता है।

X पर कुछ यूजर्स ने सही सवाल उठाया कि अगर सरकार को पहले से कोई जानकारी नहीं थी, तो फिर खुफिया एजेंसियां कर क्या रही थीं? क्या सिर्फ विपक्षी नेताओं की जासूसी करना ही इनका काम रह गया है? जनता का खून खौल रहा है, क्योंकि यह पहला मौका नहीं है जब सरकार ने ऐसी विफलता दिखाई है। बार-बार होने वाले आतंकी हमले और सरकार की निष्क्रियता ने आम आदमी के धैर्य की सीमा तोड़ दी है।

राष्ट्रपति शासन से क्यों कतरा रही है सरकार?

पहलगाम हमले के बाद देशभर में राष्ट्रपति शासन की मांग उठ रही है। जनता पूछ रही है कि जब जम्मू-कश्मीर में इतना बड़ा नरसंहार हो सकता है, तो केंद्र सरकार स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम क्यों नहीं उठा रही? क्या सरकार को डर है कि राष्ट्रपति शासन लागू करने से उसकी “कश्मीर में शांति” की कहानी की पोल खुल जाएगी? या फिर यह डर है कि स्थानीय लोग इसे केंद्र का तानाशाही कदम मानेंगे? यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में हाल ही में चुनी गई नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार है,

लेकिन जब आतंकवाद इस हद तक बढ़ जाए कि मासूमों का खून सड़कों पर बहे, तो संवैधानिक औपचारिकताओं को दरकिनार कर कड़ा फैसला लेना सरकार की जिम्मेदारी है। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना कोई नई बात नहीं है। 1990 के दशक में जब कश्मीर आतंकवाद की आग में जल रहा था, तब भी यही कदम उठाया गया था। फिर अब यह हिचक क्यों? क्या सरकार की प्राथमिकता जनता की सुरक्षा है, या फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विपक्ष की आलोचना से बचना? यह ढुलमुल रवैया आतंकियों के हौसले बुलंद कर रहा है और जनता को असहाय बना रहा है।

राजनीतिक स्वार्थ और तुष्टीकरण का खेल

सबसे शर्मनाक बात यह है कि बीजेपी सरकार, जो खुद को हिंदू हितों की रक्षक बताती है, इस हमले पर चुप्पी साधे हुए है। क्या यह चुप्पी किसी राजनीतिक तुष्टीकरण का हिस्सा है? आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई न करने के पीछे सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। यह सच है कि कश्मीर में जटिल सामाजिक और राजनीतिक स्थिति है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मासूमों की हत्या को नजरअंदाज किया जाए।

बीजेपी ने 2014 और 2019 के चुनावों में राष्ट्रवाद और आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति का वादा किया था, लेकिन आज वही सरकार आतंकियों के सामने घुटने टेकती नजर आ रही है। जनता पूछ रही है कि क्या सरकार का राष्ट्रवाद सिर्फ चुनावी जुमला था? क्या हिंदू समाज का खून इतना सस्ता है कि उसकी हत्या पर भी सरकार खामोश रहेगी? आये दिन कश्मीर में घटनाएं होती रहती है लेकिन सरकार का मीडिया तंत्र दिखाता नहीं जिससे देश की जनता को लगता है कि कश्मीर की संस्कृति वापस आ गयी है।

जनहित में सरकार को कठघरे में खड़ा करना जरूरी

यह हमला सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और एकता पर हमला है। जनता का गुस्सा जायज है, क्योंकि यह उनकी जान-माल की सुरक्षा का सवाल है। सरकार को चाहिए कि वह तुरंत निम्नलिखित कदम उठाए—

तत्काल सैन्य कार्रवाई— आतंकियों और उनके आकाओं के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक या बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया जाए।
खुफिया तंत्र में सुधार— खुफिया विफलता की जांच हो और जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
राष्ट्रपति शासन पर विचार— अगर राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम है, तो राष्ट्रपति शासन लागू करने में देरी न की जाए।
पीड़ितों को न्याय— मृतकों के परिवारों को तुरंत मुआवजा और घायलों को बेहतर इलाज मुहैया कराया जाए।
सख्त कानूनी कार्रवाई—आतंकियों और उनके समर्थकों को कठोर सजा दी जाए, ताकि भविष्य में कोई ऐसी हिम्मत न करे।

पहलगाम का यह नरसंहार बीजेपी सरकार के लिए एक लिटमस टेस्ट है। अगर सरकार अब भी चुप रही, तो यह न केवल उसकी नाकामी होगी, बल्कि देश की जनता के साथ किया गया सबसे बड़ा विश्वासघात होगा। जनता का धैर्य जवाब दे रहा है, और वह अपने नेताओं से खोखले वादों के बजाय ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रही है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई समझौता नहीं हो सकता। सरकार को यह समझना होगा कि उसका पहला कर्तव्य जनता की सुरक्षा है, न कि राजनीतिक स्वार्थ या अंतरराष्ट्रीय दबाव को खुश करना।

अगर बीजेपी अब भी नहीं जागी, तो जनता का गुस्सा सड़कों पर उतरेगा, और इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। यह समय खामोशी का नहीं, बल्कि आग उगलने और आतंकियों को नेस्तनाबूद करने का है। जागो, भारत सरकार, जागो—अब और देर मत करो!

ज्ञानेंद्र मिश्रा
मुंबई | 23 अप्रैल, 2024

पहलगाम हत्याकांड के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराना न केवल एक मूर्खतापूर्ण और कायरतापूर्ण कृत्य है, बल्कि यह सरकार की अपनी विफलताओं से जनता का ध्यान भटकाने की एक हताश कोशिश भी है। कटु सत्य यह है कि हमारी खुफिया एजेंसियाँ इस हमले को रोकने में बुरी तरह विफल रहीं।

हम सब जानते हैं कि असली खतरा हमारे भीतर ही है — दुश्मन हमारे ही बीच में ही छिपा बैठा है। फिर भी राजनीतिक मजबूरियों के चलते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।

देश को ईमानदार और जवाबदेही कार्यवाही चाहिए, न कि दोषारोपण और खोखले भाषण।

अब समय आ गया है कि सरकार आंतरिक सड़न का सामना करे और निष्पक्ष तथा निर्णायक कार्रवाई करे —अपने मित्र देश इजराइल से कुछ सीखे और बिना किसी राजनीतिक मंशा के ईमानदारी से आगे बढ़े।

– ज्ञानेंद्र मिश्र मुंबई

Click on the link सीतापुर में पत्रकार की हत्या सरकार की खामोशी पत्रकारों ने दी ज्ञापन।

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6 thoughts on “पहलगाम मे 28 हिंदुओं कि जघन्य हत्या —क्यों नही हो रहा सर्जिकल स्ट्राइक”

  1. आप जो भी जानकारी देते हैं सही देते हैं इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏

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  2. बहुत दुखद घटना 😘 बोट कि राजनीति में मुहतोड जबाब नहीं दे पायेगी बीजेपी। सब वोट बैंक की राजनीति है वास्तविक जबाब न देकर बीजेपी मुस्लिम वोट सहेजने का एक तरफ काम कर रही है तो दूसरे तरफ़ गोदी मीडिया से अफवाह फैला कर कि ये हुआ वो हुआ वास्तव में कुछ भी नहीं हुआ जनता को गुमराह कर वोट सहेजने का बस काम हो रहा है।

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