प्राचीन काल से ही हमारे धर्मग्रंथों और पौराणिक लोककथाओं में भाग्य और कर्म का गहन महत्व बताया गया है। इस कहानी में हम भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव एक रोचक और विचारणीय प्रसंग को प्रस्तुत कर रहे हैं जिसे अंत तक पढ़ने व मनन करने से जीवन में बदलाव के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रेरणा मिल सकती है इस कहानी को अंत तक इत्मिनान से पढ़िए समझिए और अपने-अपने जीवन में अनुसरण किजिये। लेखक कि लेखनी समाज के लिए मार्गदर्शी होती है क्योंकि कर्म धर्म की कलम ईश्वरीय सत्ता के अंतर्गत चलती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती ने मानव जीवन के संघर्षों और भाग्य-कर्म के रहस्यों को समझाने के लिए धरती पर भ्रमण किया। जिस पर आधारित यह पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि भाग्य और कर्म का संतुलन ही जीवन का आधार है। कहानी की रूपरेखा निम्नवत है।
- शिव और पार्वती का पृथ्वी पर आगमन
- मानव जीवन के संघर्षों को समझने के लिए शिव और पार्वती ने पृथ्वी का भ्रमण किया।
- अंधे धनवान और दरिद्र व्यक्ति की मुलाकात
- गांव में एक दरिद्र व्यक्ति और अंधे धनवान की स्थिति ने माता पार्वती को करुणा से भर दिया।
- सोने के घड़े की परीक्षा
- भगवान शिव ने दरिद्र व्यक्ति के भाग्य की परीक्षा लेने के लिए उसके रास्ते में सोने का घड़ा रखा।
- दरिद्र व्यक्ति का घड़े को न पहचानना
- दरिद्र व्यक्ति ने घड़े को पत्थर समझकर रास्ते से हटा दिया, जिससे उसकी सोच और भाग्य उजागर हुए।
- माता पार्वती का आश्चर्य और शिव का ज्ञान
- भगवान शिव ने समझाया कि भाग्य और दृष्टिकोण का गहरा संबंध है।
- कहानी से मिलने वाला जीवन का संदेश
- भाग्य और कर्म का संतुलन
- अवसर को पहचानने का महत्व
- सकारात्मक सोच का प्रभाव
- आधुनिक जीवन के लिए प्रेरणा
- यह कथा सिखाती है कि सही कर्म और सकारात्मक दृष्टिकोण से भाग्य को बदला जा सकता है।
भगवान शिव और माता पार्वती का धरती पर आगमन–
प्राचीन काल की बात है, भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा, “हे स्वामी, हम सदैव अपने भक्तों की प्रार्थनाओं को सुनते हैं, परंतु उनके जीवन को पास से देखने और समझने का अवसर कम ही मिलता है। चलिए, आज हम पृथ्वी पर भ्रमण करें और मानव जीवन के संघर्षों को देखें।”
भगवान शिव ने माता पार्वती की बात स्वीकार कर ली। भगवान शिव अपने वाहन नंदी पर सवार होकर जगत-जननी स्वरुपा माता पार्वती के साथ पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकल पड़े।
चलते-चलते शिव और पार्वती एक गांव पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि एक अंधा व्यक्ति, जो धनवान था, और एक बेहद दरिद्र व्यक्ति साथ-साथ चल रहे थे। अंधे व्यक्ति के पास खाने-पीने का सामान था, जबकि दरिद्र व्यक्ति अत्यंत भूखा और कमजोर था। जो अंधे को एक डंडे से सहारा दे लिए जा रहा था।
दोनों धीरे-धीरे गांव के बाहर एक बागीचे की ओर जा रहे थे। वहां पहुंचकर अंधे व्यक्ति ने अपनी खाने-पीने की सामग्री में से कुछ खाया और जो बचा, वह दरिद्र व्यक्ति को दे दिया। दरिद्र व्यक्ति ने उस बचा-खुचा भोजन को खाया।
यह दृश्य देखकर माता पार्वती का हृदय करुणा से भर गया। उन्होंने भगवान शिव से कहा, “हे स्वामी, यह दरिद्र व्यक्ति कितने कष्ट में है। इसका जीवन इतना दुखद और अभावपूर्ण क्यों है? क्या इसे थोड़ा धन देकर इसका जीवन सुखमय नहीं बनाया जा सकता?”
भगवान शिव मुस्कुराए और बोले, “पार्वती, इस व्यक्ति का जीवन भाग्य और कर्म के बंधन में जकड़ा हुआ है। इसे धन दिया भी जाए, तो भी यह उसे स्वीकार नहीं करेगा।”
माता पार्वती को यह बात असंभव प्रतीत हुई। उन्होंने जिज्ञासापूर्ण स्वर में कहा, “हे स्वामी, ऐसा कौन होगा जो धन को ठुकरा दे? कृपया इसे कुछ धन देकर देखें।”
भगवान शिव ने माता पार्वती की बात मान ली। उन्होंने अपने दिव्य चमत्कार से सोने के सिक्कों से भरा एक सोने का घड़ा बनाया और उसे दरिद्र व्यक्ति के रास्ते में रख दिया। वह घड़ा इस प्रकार रखा गया कि व्यक्ति के लिए उसे देखना और पाना सहज हो।
भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा, “चलो, अब देखते हैं कि यह व्यक्ति इस धन का उपयोग करता है या नहीं।”
भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा वहां छाया में चलकर बैठकर देखा जाए, आप जिसे धन देने के लिए जिद्द कर रही हैं वो इस धन को क्या करता है?
दरिद्र व्यक्ति की प्रतिक्रिया- थोड़ी देर बाद वह दरिद्र व्यक्ति, अंधे व्यक्ति को सहारा देते हुए उसी रास्ते से लौटा। थोड़ी दूर चलने के बाद वह दरिद्र व्यक्ति अपने आंखों पर पट्टी बांधकर अंधे होने का एहसास करते चलने लगा कि देखें अंधे व्यक्ति को चलने में कितनी समस्या होती होगी। जैसे ही वह सोने के घड़े के पास पहुंचा, उसने महसूस किया कि रास्ते में कुछ रखा है। उसने अपनी लाठी से उसे छुआ और कहा, “अरे, यह रास्ते में पड़ा कोई पत्थर है। इसे हटाना होगा ताकि कोई ठोकर न खा ले।” यह कहते हुए उसने घड़े को रास्ते से किनारे कर दिया और बिना रुके आगे बढ़ गया।
माता पार्वती का आश्चर्य और शिव का ज्ञान
यह देखकर माता पार्वती अत्यंत आश्चर्यचकित हो गईं। उन्होंने भगवान शिव से कहा, “हे स्वामी, यह तो अविश्वसनीय है! इसे कैसे पता नहीं चला कि वह पत्थर नहीं, बल्कि सोने का घड़ा था? क्या इसका भाग्य सचमुच इतना खराब है?”
भगवान शिव ने गहन ज्ञानपूर्ण स्वर में उत्तर दिया-
पार्वती, मैंने पहले ही कहा था कि यह व्यक्ति अपने भाग्य से बंधा हुआ है। इसकी दृष्टि केवल भौतिक नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी अंधी है। इसे अवसर मिला, लेकिन इसके भाग्य में उस अवसर को पहचानना और स्वीकार करना नहीं लिखा था। इस वजह से वो निज मौके पर भी दुखपूर्ण जीवन जीने के बावज़ूद स्वीकार करने के जगह अपने बनावटी अंधेपन के कारण आपके प्रस्ताव स्वरूप उस धन को भी स्वीकार नहीं कर सका। जब जीवन रूपी भाग्य दुखपूर्ण रहना होता है तो ऐसे ही जीवन में मिले मौके को व्यक्ति स्वयं गंवा बैठता है और उन्हें बाद में कुछ भी हासिल नही होता। अनायास ही दोष ईश्वर को दे दिया जाता है।
कहानी का गहरा संदेश
इस घटना ने माता पार्वती को गहन शिक्षा दी। यह कथा केवल एक रोचक कहानी नहीं है, बल्कि हमारे जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है। किसी महत्वपूर्ण अवसर को खो देना खुद अपनी सबसे बड़ी कमी है।
भाग्य और कर्म का संतुलन- भाग्य और कर्म दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण हैं। लेकिन केवल भाग्य पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। अपने कर्मों के माध्यम से भाग्य को बदलने का प्रयास करना चाहिए। किसी-किसी को उत्तम भाग्य और पूर्व जन्मों के अच्छे कर्म के फलस्वरूप कुछ अनायास ही मिलता दिख जाए तो उसे ईश्वरीय या प्राकृतिक वरदान मानकर स्वीकार कर लेना सबसे बड़ी समझदारी है।
अवसर की पहचान- जीवन में अवसर हर किसी को मिलते हैं। लेकिन उनकी पहचान और सही समय पर उनका उपयोग करना हमारी सोच और समझ पर निर्भर करता है। जब निज मौके पर उस दरिद्र व्यक्ति के समान आखों पर पट्टी बांध आवश्यकता स्वरूप धन, उपहार, साथ आदि को स्वीकार नहीं किया जाता तो उसके लिए ईश्वर दोषी नहीं। ईश्वर ने तो आवश्यक वस्तु सामने रख ही दिया जब उसे स्वीकार नहीं किया जायेगा तो इसमे सम्पूर्ण दोष खुद की होती है।
सकारात्मक सोच का महत्व- यदि हमारी दृष्टि और सोच सकारात्मक हो, तो हम कठिन परिस्थितियों में भी अवसरों को पहचान सकते हैं और उनका लाभ उठा सकते हैं। ईश्वर ने हम सभी को सोचने समझने उचित निर्णय लेने की छमता अनुसार ज्ञान दिया है। किसी-किसी को ईश्वरीय वरदान स्वरूप ज्ञान की अधिकता रहती है जो समाज के लिए मार्गदर्शी साबित होते हैं। जहां दिमाग किसी निर्णय को लेने सोचने समझने में थोड़ी असमर्थ दिखे वहां अपने दिल से उत्पन्न सोच विचार पर निर्णय ले लेनी चाहिए। यही सकारात्मक दृष्टिकोण से लिया गया निर्णय जीवन के पथ को सुखमय बनाने में मदद करता है।
असफलताओं के लिए भाग्य दोषी क्यो?

आज के समय में भी कई लोग अपनी असफलताओं के लिए भाग्य को दोष देते हैं। वे परिस्थितियों का बहाना बनाते हैं और अवसरों को पहचानने और उनका सही उपयोग करने में खुद ही असफल रहते हैं। कभी-कभी तो ईश्वर को ही दोषी करार देते हुए कुछ लोगों को देखा जा सकता है। वैसे लोगों का जीवन तमाम संघर्ष से गुजरते हुए भी दुखपूर्ण व्यतीत होता है। अगर आपको अपने जीवन में किसी चीज़ की आवश्यकता है और वो किसी तरह से सामने नज़र में है तो उसे प्राकृतिक या ईश्वरीय वरदान मानकर स्वीकार कर लेना भाग्य का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ईश्वर किसी को कुछ पाने का बार-बार अवसर नही देता जब कभी भी अवसर मिले सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए।
आधुनिक जीवन में कहानी का महत्व-
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि हम अपने जीवन में बदलाव चाहते हैं, तो हमें अपनी सोच, दृष्टिकोण और कर्मों को सुधारना होगा। केवल भाग्य पर भरोसा करना या ईश्वर को दोषी करार देना जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं है। अपने दिल दिमाग से आवश्यक निर्णय समय-समय पर लेना चाहिए अवसर खो देना बहुत बड़ी मुर्खता है।
भाग्य और कर्म का गूढ़ संदेश
भाग्य और कर्म दोनों हमारे जीवन को दिशा देने में महत्वपूर्ण हैं। सही दृष्टिकोण और प्रयासों से भाग्य को भी बदला जा सकता है। यह कथा हमें सिखाती है कि हमें अवसरों को पहचानने और उनका लाभ उठाने की क्षमता खुद मे विकसित करनी चाहिए। ईश्वरीय या प्रकृति किसी को एक अवसर अपने आवश्यकता अनुसार जरुर देती है। उसे खोने के बाद भविष्य में पछतावा कभी न कभी जरुर आता है।
भगवान शिव माता पार्वती के इस कथा का निष्कर्ष
भगवान शिव और माता पार्वती की यह कथा केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि जीवन के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें सिखाती है कि भाग्य और कर्म दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सही प्रयासों और सकारात्मक दृष्टिकोण से हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
इस कहानी का संदेश यही है कि हमें अपने कर्मों के माध्यम से अपने भाग्य को सुधारने की दिशा में सतत प्रयास करना चाहिए। जीवन में केवल अवसरों का आना पर्याप्त नहीं है, उन्हें पहचानकर उपयोग करना ही असली सफलता है। किसी को बार-बार ईश्वर अवसर नही देता।
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