स्त्री और पुरुष के बीच का रिश्ता मानव जीवन के सबसे गहरे और जटिल पहलुओं में से एक है। यह न केवल सृष्टि के संचालन का एक माध्यम है, बल्कि इसमें प्रेम, समर्पण, और आध्यात्मिक ऊर्जा का समावेश भी होता है। भारतीय शास्त्रों में कामकला को लेकर जो विवेचना की गई है, वह केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक पहलुओं का गहन विश्लेषण किया गया है। जानिए भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी से गूढ़ रहस्यों को।
रतिक्रिया और शारीरिक ऊर्जा का संतुलन
रतिक्रिया केवल मानव शरीर की प्राकृतिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह शारीरिक ऊर्जा को संतुलित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। रतिक्रिया की समुचित ज्ञान भूत, भविष्य, वर्तमान में होने वाली शारीरिक बिमारियों का सम्पूर्ण उपचार व निदान है। हमारा समाज पूरी तरह इस ज्ञान से परे अपने दिमागी कामवासना को शांत करने के लिए अज्ञानता के साथ रतिक्रिया में संलिप्त हो जाता है और तमाम तरह की बिमारियों को जन्म दे शारीरिक और मानसिक पीड़ा से जूझते हुए जीवन व्यतीत करते मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
शरीर के अंगों में ऊर्जा केंद्र
प्राचीन ग्रंथों में खासकर रति मंजरी और रति रहस्य नामक स्त्री ग्रंथों में स्त्री के किन अंगो में कामदेव के निवास स्थान का वर्णन मिलता है कि स्त्रियों और पुरुषों के शरीर में अलग-अलग अंग काम ऊर्जा के भंडार हैं। जानिए संक्षिप्त रूप में आज के इस दुर्लभ लेख में भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के देव वंश-अमित श्रीवास्तव की कर्म-धर्म लेखनी से।

काम-कला वर्णन-प्रकरणम् रति-मंजरी।
हिन्दी-गद्य-पद्या-नुवाद-सहिता।।
अङ्गुले चरणे च गुल्फ-निलये जानु-द्वये बस्तिके।
नाभौ-वक्षसि जयोनिगदिता कण्ठे कपोलेऽघरे।।
नेत्रे कर्ण-युगे ललाट-फलके मौलौ च वामभ्रुबा।
मूर्ध्वाध-श्चलनक्रमेण कथिता चान्द्री कला पक्षयोः।।
स्त्रियों में: अंगूठे, पैर की उंगलियां, घुटने, नाभि, स्तन, योनि, कण्ठ, ललाट मस्तिष्क, नेत्र, पलक और शरीर के बायीं भाग और अधर आदि में कामदेव निवास करते हैं। इन जगहों पर, पर लिंगीय द्वारा स्पर्श मात्र से कामवासना जाग्रति हो उठती है।
पुरुषों में: छाती, कंधे, पीठ गुप्तांग और दाहिने अंगों में काम ऊर्जा का अधिक प्रवाह होता है।
ऊर्ध्व और अधः क्रम का विज्ञान
शुक्ल पक्ष में स्त्रियों के बाएं अंगों में और पुरुषों के दाहिने अंगों में काम ऊर्जा का वास होता है। कृष्ण पक्ष में यह क्रम उलट जाता है। ऊर्ध्व और अध क्रम का ज्ञान हमारे ऋषि मुनियों को विशेष रूप से था जो धर्म पथ पर अग्रसर अपने उस ज्ञान से इच्छानुसार सुयोग्य संतान की प्राप्ति करते थे। इस विषय पर एक अलग लेखनी अगले भाग में दे रहे हैं जो ऊर्ध्व और अधः का समझ आप पाठकों को परिपूर्ण करेगा। ऊर्ध्व और अधः क्रम का विज्ञान: ऊर्जा प्रवाह का गूढ़ रहस्य: अगला यह शिर्षक नीचे देखकर क्लिक कर पढ़िए। आईए वापस होते हैं मूल शिर्षक पर।
काम ऊर्जा का प्रवाह कैसे प्रभावित करता है?
रतिक्रिया के बाद शारीरिक थकावट के साथ मानसिक शांति और संतोष का अनुभव होता है। यह ऊर्जा को नवीनीकरण और तनाव को दूर करने में मदद करता है।
प्राचीन शास्त्रों में कामनिवास का उल्लेख
कामसूत्र, रतिमंजरी, और स्त्री जातक जैसे ग्रंथों में यह विस्तार से वर्णित है कि कामनिवास शरीर के किन-किन हिस्सों में होता है। थोड़ी जानकारी ऊपर दे दिया हूं विस्तृत जानकारी के लिए शास्त्रों का अध्ययन किजिए या जानकारी के लिए हमारे भारतीय हवाटएप्स कालिंग सम्पर्क नम्बर 07379622843 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
अध्यात्म और शरीर का संबंध
शरीर के इन ऊर्जा केंद्रों को संतुलित करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।
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काम और समाज: आकर्षण और चरित्र का संघर्ष
पुरुषों का आकर्षण- पुरुषों का ध्यान अक्सर स्त्रियों के वक्ष स्थल, नाभि, और अधरों की ओर जाता है। यह केवल शारीरिक आकर्षण नहीं है, बल्कि यह उनके मानसिक और हार्मोनल संतुलन का भी हिस्सा है। स्त्री के वक्ष स्थल को धन और सौंदर्य का प्रतीक माना गया है। पुरुष का आकर्षण प्रकृति द्वारा सृजन के लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
स्त्रियों का दृष्टिकोण- स्त्रियां भी पुरुषों के शारीरिक आकर्षण के प्रति संवेदनशील होती हैं। हालांकि, उनका ध्यान अक्सर पुरुषों की मानसिक और भावनात्मक शक्ति पर अधिक होता है।
चरित्रहीनता और सामाजिक प्रभाव
चरित्रहीनता, चाहे वह पुरुषों में हो या स्त्रियों में, समाज के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।
स्त्रियों में चरित्रहीनता के 20 प्रकार– कुप्रवृत्ति, उन्मादी, कर्कशा, और अय्याश जैसी प्रवृत्तियों को प्राचीन ग्रंथों में चरित्रहीनता का कारण बताया गया है। चरित्रहीनता की पहचान शारीर और मानसिकता को देखकर जानने के लिए गहन अध्ययन कि आवश्यकता है इस विषय पर लेखनी हम पहले दे चुके हैं जिसे आप गूगल सर्च से amitsrivastav.in Google side पर पढ़ सकते हैं।
यहां बोर्ड ब्लू लाइन पर क्लिक किजिये पढ़िए एक लेख चरित्रहीन चरित्रवान औरत की पहचान।
आधुनिक समस्याएं- आज के समय में कालगर्ल कल्चर और विवाहेतर संबंध समाज को नैतिकता के पतन की ओर ले जा रहे हैं।
रतिक्रिया और स्वास्थ्य का संबंध

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, रतिक्रिया केवल आनंद का साधन नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य को बनाए रखने का एक प्राकृतिक उपाय भी है। प्रतिक्रिया की समुचित ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गहन अध्ययन कि आवश्यकता है। जिन्हें कामकला रतिक्रिया का सही ज्ञान हो वह अपने साथी को सम्पूर्ण रोगों से निजात दिलाने में सक्षम हो सकता है।
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शारीरिक लाभ- रतिक्रिया से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। तनाव कम होता है और मानसिक शांति मिलती है। यहां तक कि मोंक्ष का मार्ग भी सुलभ हो जाता है।
मानसिक और भावनात्मक लाभ- आत्मविश्वास बढ़ता है।
रिश्तों में सामंजस्य आता है।
काम और उम्र का प्रभाव- जवानी में काम ऊर्जा उच्चतम स्तर पर होती है। बुढ़ापे में काम ऊर्जा का ह्रास होता है, लेकिन संतुलित जीवनशैली से इसे बनाए रखा जा सकता है।
आधुनिक समाज में काम और नैतिकता
भारत में विदेशों की तरह कालगर्ल का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। युवाओं में कामुकता के कारण नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
विवाहेतर संबंध और व्यभिचार – विवाह के बाहर कहीं-कहीं शारीरिक संबंध बनाना व्यभिचार कहलाता है। धर्मशास्त्रों के गहन मंथन से व्यभिचार का पूरा प्रकरण समझा जा सकता है। अज्ञानता वश यह कहीं-कहीं रिश्तों की पवित्रता को तोड़ता है और समाज में अपराध और हिंसा को बढ़ावा देता है। किन्तु एक पक्ष अपनी कामवासना के लिए अलग-अलग से रिस्ता बनाना शुरू कर दे, उस स्थिति में दूसरे पक्ष को अपनी शारीरिक और मानसिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक सुयोग्य साथी का साथ धर्म मार्ग से व्यभिचार या पाप की श्रेणी में नहीं आता। इसका धर्म ग्रंथों में तमाम उदाहरण भरा पड़ा है। कहीं-कहीं उलट फेर कर समाज में दिखाया जाता है जैसे अहिल्या और इंद्र का शारीरिक संबंध पूरी तरह समाज को उलट कर दिखाया गया है। अहिल्या की रचना ब्रह्मा जी ने किया था पालन पोषण की जिम्मेदारी अपने ही मानस पुत्र गौतम ऋषि को दे दिया अहिल्या देव लोक कि अप्सराओं से अधिक सुंदर थी उसका यौवनावस्था जीवन पर्यन्त परिपूर्ण रहने का वरदान था। अहिल्या इतनी योग्य थी कि वो किसी भी स्थिति का सामना कर सकती थी। देवराज इंद्र अहिल्या पर मोहित थे किन्तु ब्रह्मा जी अपने पुत्र नारद के सुझाव पर विवाह गौतम ऋषि से ही कर दिया एक दिन इंद्र अपनी कामवासना की याचना लेकर अहिल्या के समक्ष प्रस्तुत हुए अहिल्या एक याचक यानी भिक्षुक की इच्छा पूरी कि यह एक गूढ़ रहस्य है जिसे सत्य रूप में उजागर नही किया जाता ताकि स्त्रीयों को उदाहरण दे गुमराह किया जाता है। आते हैं पुनः मूल शिर्षक की ओर।
समाज पर प्रभाव– कामवासना के असंतुलन के कारण रिश्तों में दरार बढ़ रही है। नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है, जिससे सामाजिक समस्याएं जन्म ले रही हैं।
स्त्री-पुरुष के संबंधों का आध्यात्मिक पक्ष
प्राचीन शास्त्रों में रतिक्रिया को केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं रखा गया। इसे आत्मा और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने का एक माध्यम बताया गया है।
संतुलन का महत्व- रतिक्रिया से मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित होता है।
आध्यात्मिक उन्नति– यह आत्मा को शुद्ध करने और ईश्वर के करीब लाने का एक साधन भी हो सकता है।
स्त्री, पुरुष और कामकला का रहस्य लेखनी का उद्देश्य
स्त्री और पुरुष के बीच का संबंध केवल शारीरिक नहीं है। यह मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक स्तर पर भी जुड़ा हुआ है। रतिक्रिया का महत्व न केवल शारीरिक सुख में है, बल्कि यह जीवन में ऊर्जा, संतुलन, और सृजन को बढ़ावा देती है। समाज में काम और नैतिकता के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, ताकि रिश्ते मजबूत रहें और समाज में शांति और समृद्धि बनी रहे। रतिक्रिया कामकला का ज्ञान प्राप्त होना जीवन को सुखमय निरोग बनाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अंतिम विचार – काम ऊर्जा का सही उपयोग न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए जरूरी है, बल्कि यह समाज की नैतिकता और स्थिरता को बनाए रखने में भी सहायक है।