शिव-शक्ति का संगम स्थल भीमाशंकर शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जानें यहां Bhimashankar Temple Shaktipeeth से जुड़ी ऐतिहासिक पौराणिक कथाओं के साथ सम्पूर्ण जानकारी। Bhimashankar Shaktipeeth 19th Wonderful Maharashtra
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bhimashankar temple भीमाशंकर शक्तिपीठ एवं ज्योतिर्लिंग का परिचय और धार्मिक महत्व
भीमाशंकर शक्तिपीठ महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित एक पवित्र तीर्थस्थल है। यह स्थान भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ 51 शक्तिपीठों में भी शामिल है। यहाँ भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग और देवी सती का नाभि भाग स्थापित है, जिसके कारण यहाँ शिव और शक्ति की संयुक्त उपासना की जाती है। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया, तब उनका नाभि भाग यहाँ गिरा था।
इस शक्तिपीठ की रक्षा भैरव रूप में भीमलोचन करते हैं, जो इस स्थान को और भी पवित्र बनाते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य, घने जंगल और भीमा नदी का उद्गम इसे एक अनूठा तीर्थ बनाते हैं। यहाँ का शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को बार-बार यहाँ खींच लाती है।
Bhimashankar Shaktipeeth पौराणिक कथा: सती और शिव का तांडव
भीमाशंकर शक्तिपीठ की उत्पत्ति की कथा हिंदू धर्म के प्रमुख पुराणों से जुड़ी है। स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होने के कारण आत्मदाह कर लिया, तब भगवान शिव क्रोधित और शोकाकुल हो गए। उन्होंने सती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया, जिससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। ब्रह्मा और विष्णु ने स्थिति को संभालने के लिए हस्तक्षेप किया।
भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती शरीर को 51 खंडों में आदिशक्ति जगत जननी के मार्गदर्शन में विभाजित कर दिया ये खंड धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जो शक्तिपीठ कहलाए। भीमशंकर में सती का नाभि भाग गिरा, जिससे यह स्थान शक्ति और शिव का संगम बन गया। यह कथा यहाँ की महिमा को और गहराई देती है।
भीमलोचन भैरव की रोचक कहानी
भीमाशंकर में भैरव रूप में भीमलोचन की उपस्थिति इस शक्तिपीठ को विशेष बनाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीमलोचन या कहें भीमालोचन एक शक्तिशाली भैरव हैं जो शक्ति की रक्षा के लिए यहाँ निवास करते हैं। एक कथा के अनुसार, जब राक्षस त्रिपुरासुर ने देवताओं पर आक्रमण किया, तब भगवान शिव ने उसका वध किया। इस युद्ध के दौरान सती का नाभि भाग यहाँ गिरा और भीमलोचन को उसकी रक्षा का दायित्व सौंपा गया। भक्तों का मानना है कि भीमलोचन यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं और उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं। यहाँ भैरव की पूजा विशेष रूप से तंत्र साधकों के बीच लोकप्रिय है।
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और भीमाशंकर का नाम
भीमशंकर को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब राक्षस भाइयों कुंभकर्ण और रावण के पुत्र भीम ने तपस्या करके शिव को प्रसन्न किया, तब शिव ने यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। इस कारण इस स्थान का नाम भीमशंकर पड़ा। एक अन्य कथा में कहा जाता है कि यहाँ भीमा नदी के उद्गम के कारण भी इसका नाम भीमशंकर हुआ। यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू माना जाता है, अर्थात यह प्राकृतिक रूप से प्रकट हुआ। यहाँ का शिवलिंग अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में बड़ा और अनियमित आकार का है, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाता है।
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मंदिर की वास्तुकला और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भीमशंकर का मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर कई शताब्दियों पुराना माना जाता है, हालाँकि इसका सटीक निर्माण काल अस्पष्ट नहीं है। मंदिर के गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग स्थापित है, और इसके चारों ओर नक्काशीदार स्तंभ और दीवारें इसे भव्यता प्रदान करती हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा शासकों और पेशवाओं के समय में हुआ। मंदिर परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जो गणेश, पार्वती और हनुमानजी को समर्पित हैं। यहाँ की शिल्पकला में प्राचीन भारतीय कला की झलक देखने को मिलती है, जो इसे ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती है।
bhimashankar temple photos प्राकृतिक सौंदर्य और भीमा नदी का उद्गम

भीमाशंकर का प्राकृतिक सौंदर्य इसकी धार्मिक महत्ता को और बढ़ाता है। यहाँ घने जंगल, ऊँचे पहाड़ और झरने इसे एक मनोरम स्थल बनाते हैं। मंदिर के पास ही भीमा नदी का उद्गम होता है, जो एक पवित्र जलस्रोत माना जाता है। मानसून के दौरान यहाँ का दृश्य और भी आकर्षक हो जाता है, जब चारों ओर हरियाली छा जाती है और झरनों का शोर वातावरण को जीवंत कर देता है। यह नदी आगे चलकर कृष्णा नदी में मिलती है और कई क्षेत्रों को जीवन प्रदान करती है। प्रकृति और अध्यात्म का यह संगम भीमाशंकर को एक अनूठा गंतव्य बनाता है।
धार्मिक उत्सव और भक्तों की भीड़
भीमाशंकर में साल भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि, सावन मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष भीड़ देखने को मिलती है। सावन के महीने में भक्त यहाँ जलाभिषेक करने और शिवलिंग की पूजा करने आते हैं। मंदिर परिसर में भजनों और मंत्रोच्चारण से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। महाशिवरात्रि पर यहाँ रुद्राभिषेक और रात्रि जागरण जैसे आयोजन होते हैं। इन अवसरों पर मंदिर को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है, जो इसे और भी दिव्य बनाता है। यहाँ की भक्ति और उत्साह की ऊर्जा हर किसी को प्रभावित करती है।
Bhimashankar TEMPLE यात्रा शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे मार्ग और सुझाव
भीमाशंकर पुणे से लगभग 110 किलोमीटर और मुंबई से 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। पुणे से नियमित बसें और टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे है, जहाँ से मंदिर तक वाहन लेना पड़ता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए कुछ पैदल मार्ग भी है, जो जंगल से होकर गुजरता है। यात्रियों को मानसून में सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि बारिश होने पर रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं। उचित जूते, पानी और मौसम के अनुसार तैयारी जरूरी है। यहाँ ठहरने के लिए धर्मशालाएँ और छोटे होटल भी उपलब्ध हैं।
bhimashankar jyotirlinga वन्यजीव और जैव-विविधता
भीमशंकर का क्षेत्र एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ तेंदुआ, सांभर, लंगूर और कई दुर्लभ पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। प्रकृति प्रेमी यहाँ ट्रेकिंग और वन्यजीव अवलोकन का आनंद ले सकते हैं। यह अभयारण्य सह्याद्रि की जैव-विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मंदिर के आसपास का जंगल क्षेत्र शांत और रहस्यमयी है, जो यहाँ की यात्रा को और रोमांचक बनाता है। यहाँ की शुद्ध हवा और प्राकृतिक वातावरण तन-मन को तरोताजा कर देते हैं। Click on the link गूगल ब्लाग पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
भीमशंकर का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
भीमशंकर शक्तिपीठ केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रतीक भी है। यहाँ शिव और शक्ति का मिलन हिंदू दर्शन के मूल तत्व को दर्शाता है। यह स्थान तंत्र साधना, योग और ध्यान के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ की शांत वायु और पवित्र ऊर्जा साधकों को आंतरिक शांति प्रदान करती है। साथ ही, यहाँ की लोककथाएँ और परंपराएँ इसे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनाती हैं। भीमशंकर भारत के उन चुनिंदा स्थानों में से एक है, जो इतिहास, प्रकृति और धर्म का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
इस प्रकार, भीमशंकर शक्तिपीठ अपनी पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक महत्व, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्ता के कारण हर किसी के लिए एक विशेष स्थान रखता है। यहाँ की यात्रा भक्ति, रोमांच और शांति का एक संपूर्ण अनुभव प्रदान करती है।

bhimashankar temple धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता
भीमाशंकर का धार्मिक महत्व सावन मास और महाशिवरात्रि जैसे उत्सवों में और भी उजागर होता है, जब लाखों श्रद्धालु यहाँ जलाभिषेक और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। मंदिर की नागर शैली की वास्तुकला, प्राचीन इतिहास और यहाँ की पौराणिक कथाएँ इसे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनाती हैं। यहाँ की शांत वायु और आध्यात्मिक ऊर्जा तंत्र साधकों, योगियों और सामान्य भक्तों को समान रूप से आकर्षित करती है। भीमशंकर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि प्रकृति, इतिहास और अध्यात्म का एक अनूठा संगम भी है, जो हर यात्री को एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करता है।
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