कामसूत्र योनि तंत्र शास्त्र में स्त्री-पुरुष का प्रजनन अंग शक्ति, सृजन और दिव्यता का प्रतीक आध्यात्मिक और सृजनात्मक उर्जा का केंद्र माना गया है। कामशास्त्र तंत्र शास्त्र पर आधारित विश्लेषणात्मक लेखनी में जानिये यहां योनि और लिंग संगति रंग-रूप, आकार-प्रकार से यौन जीवन में संतुलन का महत्व।
सार्वजनिक धर्मग्रंथों में स्त्री के शरीर या योनि के प्रकारों के बारे में विशेष रूप से विस्तार से चर्चा नहीं की गई है, क्योंकि यह विषय मुख्य रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधारा का हिस्सा नहीं है। भारतीय धर्मग्रंथ जैसे वेद, पुराण, महाभारत, रामायण, और भगवद गीता मुख्य रूप से धर्म, नैतिकता, आत्मा, पुनर्जन्म, और मोक्ष पर केंद्रित हैं।
हालांकि, हिंदू धर्म के कुछ ग्रंथों में स्त्रियों के सम्मान, उनके कर्तव्यों, और उनके समाज में स्थान का उल्लेख मिलता है, लेकिन योनि या स्त्री की शारीरिक विशेषताओं पर चर्चा प्रायः कामशास्त्रों और तंत्र विद्या में मिलती है। इन ग्रंथों में भी शारीरिक पहलुओं से ज्यादा मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर ध्यान दिया गया है।
धर्म और अध्यात्म में, स्त्री की पवित्रता और उसका सम्मान सर्वप्रथम माना गया है। उदाहरण के लिए-
1. मनुस्मृति: इसमें स्त्रियों के लिए कर्तव्य, परिवार में उनके स्थान, और समाज में उनके महत्व के बारे में बताया गया है।
2. पुराणों: में स्त्रियों को देवी रूप में पूजने की परंपरा है, जैसे ब्रह्मांडीय शक्ति आदिशक्ति स्वरुपा पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, आदि। भग-योनि भाग को ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक अर्थात सृष्टि का सृजन उत्पत्ति का भाग माना जाता है।
कामसूत्र, योनि तंत्र शास्त्र और आयुर्वेदिक ग्रंथों के मंथन से सुस्पष्ट विश्लेषण
प्राचीन भारतीय कामशास्त्र, तंत्र शास्त्र और आयुर्वेदिक ग्रंथों में स्त्री शरीर भाग की योनि के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इन ग्रंथों में स्त्रियों की योनि को उनके शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। कामसूत्र और तंत्र शास्त्र सहित अन्य सम्बंधित शास्त्रों में 64 प्रमुख प्रकार की योनियों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें स्त्रियों के स्वभाव, शारीरिक विशेषताओं और यौन अभिरुचियों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। पिछले लेखनी में हम भगवान चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज-अमित श्रीवास्तव 64 प्रकार की योनि का वर्णन कर चुके हैं। जिसे आप नीचे दिखाई दे रहे लिंक पर क्लिक कर दुर्लभ जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। भग या योनि से संबंधित लेखनी बहुत ही दुर्लभ है, सही और समुचित जानकारी मिल पाना आधुनिक शिक्षा से मुश्किल है, तो जानिये हमारी योनि से संबंधित सत्य समुचित जानकारी प्राचीन कामशास्त्र तंत्र शास्त्र आदि दुर्लभ ग्रंथों के मंथन से सुस्पष्ट भाषा में।
कामसूत्र क्या है?

कामसूत्र प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे महर्षि वात्स्यायन ने लिखा है। यह ग्रंथ मुख्य रूप से काम (भौतिक सुख) के सिद्धांतों और प्रेम, विवाह, और यौन संबंधों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। कामसूत्र का उद्देश्य केवल शारीरिक संबंधों के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे रिश्तों की नैतिकता, जीवन साथी के साथ सामंजस्य, और सामाजिक व्यवहार के नियमों पर भी प्रकाश डाला गया है। कामसूत्र के कुछ प्रमुख विषय को जानिए।
1. प्रेम और विवाह: इसमें विवाहित जीवन में संतुलन बनाए रखने और आपसी समझ के महत्व के बारे में चर्चा की गई है।
2. शारीरिक संबंध: इसमें शारीरिक संबंधों की विभिन्न तकनीकों और यौन सुख को बढ़ाने के तरीकों का वर्णन किया गया है।
3. रिश्ते: इसमें प्रेम संबंधों और सामाजिक संबंधों के बारे में भी गहन चर्चा की गई है।
4. सौंदर्य और आकर्षण: इसमें व्यक्ति की सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाने के तरीकों पर भी जानकारी दी गई है।
कामसूत्र को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और साहित्यिक रचना माना जाता है, जो प्राचीन भारतीय जीवन दर्शन को दर्शाती है।
कामसूत्र ग्रंथ सात मुख्य भागों (अध्यायों) में विभाजित है, जिनमें विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है। ये भाग महर्षि वात्स्यायन के दृष्टिकोण से प्रेम, विवाह, और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास करते हैं। आइए इसके सात भागों का संक्षिप्त वर्णन करते हैं।
- 1. साधारण अध्याय (सामान्य विचार)
- इस भाग में काम, धर्म, और अर्थ का परिचय दिया गया है। इसमें जीवन के तीन प्रमुख उद्देश्यों (धर्म, अर्थ, काम) के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। साथ ही, यह प्रेम और रिश्तों के मनोविज्ञान को समझने का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
- 2. सम्प्रयोगिक अध्याय (शारीरिक मिलन)
- यह भाग यौन संबंधों की विभिन्न तकनीकों और शारीरिक मिलन के तरीकों का वर्णन करता है। इसमें पुरुष और महिला के शारीरिक संबंधों को संतुलित और सुखद बनाने के लिए विभिन्न आसनों और पोज़ीशन्स का विवरण दिया गया है।
- 3. कन्या संप्रयुक्तक अध्याय (पत्नी प्राप्ति)
- इसमें विवाह और पत्नी प्राप्ति के विभिन्न तरीकों पर चर्चा की गई है। इसमें यह बताया गया है कि कैसे एक पुरुष अपनी पसंद की स्त्री से विवाह कर सकता है और उसे कैसे प्रभावित कर सकता है। इसमें विवाह के प्रकार और पति-पत्नी के बीच के संबंधों की प्रकृति पर भी चर्चा की गई है।
- 4. भार्याधिकारिक अध्याय (पत्नी के साथ जीवन)
- इस भाग में विवाहित जीवन के दौरान पति और पत्नी के कर्तव्यों, अधिकारों, और आपसी सामंजस्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें पति-पत्नी के बीच के संबंधों को सुदृढ़ बनाने के उपाय और उन्हें बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यवहारों का वर्णन है।
- 5. परदिकारीक अध्याय (अन्य महिलाओं के साथ संबंध)
- यह भाग विवाहेतर संबंधों के बारे में है, जिसमें अन्य महिलाओं के साथ कैसे व्यवहार किया जाए, इसका विवरण है। इसमें परस्त्री से संबंध बनाने के विभिन्न सामाजिक, नैतिक, और व्यवहारिक पक्षों पर चर्चा की गई है। हालाँकि यह भाग नैतिकता की दृष्टि से संवेदनशील है, लेकिन वात्स्यायन ने इसे भी सामाजिक संदर्भ में समझाया है।
- 6. वैश्याधिकारिक अध्याय (वेश्याओं से संबंध)
- इस भाग में वेश्याओं के साथ संबंधों का वर्णन किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि वेश्याएं समाज में किस प्रकार का स्थान रखती हैं और उनके साथ कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए। साथ ही, इसमें यह भी समझाया गया है कि कैसे वेश्याएं समाज और पुरुषों के जीवन में अपनी भूमिका निभाती हैं।
- 7. औपनिषदिक अध्याय (अध्यात्मिक और सामाजिक जीवन के नियम)
- यह अंतिम भाग जीवन के आध्यात्मिक और सामाजिक पक्षों पर ध्यान केंद्रित करता है। इसमें काम से संबंधित जीवन के उच्चतर उद्देश्यों को समझाया गया है। साथ ही, इसमें जीवन के अंतिम चरणों में शांति और संयम के साथ जीने के तरीकों पर चर्चा की गई है।
कामसूत्र के सात भाग केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं हैं, यह जीवन के हर पहलू को संतुलित और समृद्ध बनाने का एक व्यापक मार्गदर्शक है। इसमें यौन संबंधों से लेकर सामाजिक और पारिवारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन किया गया है।
हम आपको बताते हुए आगे बढ़ रहे हैं की स्त्री के शरीर का गुप्त भाग जिसे भग या योनि कहा जाता है स्त्री शरीर में सबसे अधिक पूज्यनीय होता है, हमारे द्वारा लिखित योनि से संबंधित लेखों को अंत तक पढ़िए, जिससे योनि का सम्पूर्ण रहस्य आप भी समझ सकते हैं। कबूतर की घोषणा वाली कहानी, चरितार्थ न करें कि हमें तो ज्ञात ही है, वर्ना जीवन भर योनि से सम्बंधित दुर्लभ जानकारी से अनभिज्ञ रह जायेगें।

पुरूष के लिंग व स्त्री की योनि के आधार पर चाल-चलन, स्वभाव कि पूरी जानकारी पुरुष या स्त्री आसानी से कर सकते हैं। शरीर का हर अंग व्यक्ति की पहचान कराते हैं, अगर पहचानने वाला व्यक्ति समझदार और ज्ञानी हो तो भूत भविष्य वर्तमान को जान सकता है। सबसे अहम चीज है ज्ञान अर्जित करना, तो कोई भी जानकारी मिले तो उस पर मंथन और विचार करना मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए।
वात्स्यायन रचित कामसूत्र
कामशास्त्र, विशेष रूप से वात्स्यायन रचित कामसूत्र में, योनियों के प्रकारों का विस्तार से वर्णन मिलता है। यह वर्गीकरण स्त्री के शारीरिक और मानसिक गुणों के आधार पर किया गया था और इसका उद्देश्य यौन संबंधों की समझ को बढ़ाना था। कामसूत्र में, स्त्री और पुरुष दोनों के शारीरिक आकारों और गुणों के आधार पर यौन संतुलन और संगति पर जोर दिया गया है।
कामसूत्र में संगति और यौन संबंध
कामसूत्र में केवल योनि के आकार पर ही ध्यान नहीं दिया गया, बल्कि इसमें स्त्री और पुरुष के जननांगों के आकार के बीच संगति पर भी जोर दिया गया है। इसके अनुसार, पुरुषों को भी मुख्यतः तीन प्रकारों में बांटा गया है और स्त्री योनि को भी तीन प्रकार “मृगी योनि – मृग, खर, हिरणी” “वडवा योनि- अश्व, घोड़ी” हस्तिनी योनि – हाथी, गज में विभाजित कर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
1. खर (हिरण) – पुरुष का लिंग छोटा होता है।
2. अश्व (घोड़ा) – पुरुष का लिंग मध्यम आकार का होता है।
3. गज (हाथी) – पुरुष का लिंग बड़ा होता है।
कामसूत्र के अनुसार, संतुलित और सुखद यौन संबंधों के लिए स्त्री और पुरुष के जननांगों के आकार का मेल आवश्यक होता है। इस तुलनात्मक अध्ययन को बता दें कि विवाह के लिए जो ज्योतिष शास्त्र पंचाग से योनिकूटस्य चक्र मिलन होता है, उसमें- खग पुरूष खग स्त्री, अश्व पुरुष अश्व स्त्री, गज पुरुष गज स्त्री का चक्र मिलन 4 यानी सुखद यौनसुख गृहस्थ जीवन होता है। यदि दोनों के आकारों में असंतुलन होता है, तो यौन संबंध संतोषजनक नहीं हो सकता है। किसी के लिए कष्टकारी तो किसी के लिए असंतोष प्रदान करता है। उपरोक्त दर्शाये गये फुटेज में देख कर समझ सकते हैं। उपरोक्त लिंक से जाकर अपनी पसंदीदा वो लेखनी पढ़िए।
कामसूत्र का उद्देश्य
कामसूत्र में योनियों के प्रकारों का वर्णन केवल शारीरिक विशेषताओं के आधार पर नहीं, बल्कि यौन संतुलन और संबंधों में संगति लाने के लिए किया गया था। इसका उद्देश्य यौन जीवन में संतुलन और संतुष्टि को सुनिश्चित करना था। यह एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण था, जिसमें यौन संबंधों और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया गया था।
धर्मग्रंथ तंत्र शास्त्र के मंथन से योनि की महत्ता पर दुर्लभ जानकारी
धर्मग्रंथों में स्त्रियों का महत्व उनके शारीरिक रूप से ज्यादा, उनकी मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों पर आधारित होता है।
तंत्र शास्त्र, जो भारतीय परंपरा में एक विशिष्ट और रहस्यमय विद्या के रूप में जाना जाता है, कई विषयों पर विस्तृत चर्चा करता है, जिसमें आध्यात्मिक शक्ति, साधना, और शरीर की ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) का महत्व शामिल है। तंत्र शास्त्रों में स्त्री और पुरुष के शरीर को एक दिव्य रूप माना गया है, जहां शारीरिक संबंध को भी एक आध्यात्मिक साधना के रूप में देखा गया है।
तंत्र शास्त्र में स्त्री की योनि का विशेष महत्व बताया गया है, इसे "योनि तत्त्व" कहा गया है, जिसे सृजन और शक्ति का स्रोत माना गया है। योनि को "शक्ति" का प्रतीक माना गया है, जो सृजनात्मक ऊर्जा और देवी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। तंत्र शास्त्र के अनुसार, स्त्री की योनि को केवल शारीरिक अंग के रूप में नहीं, बल्कि दिव्य और पवित्र शक्ति के रूप में देखा गया है।
योनि के प्रकार: types of vegina

तंत्र शास्त्र में यह भी कहा जाता है कि हर स्त्री की योनि में अलग-अलग ऊर्जा और गुण होते हैं, जो उसके शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वरूप को प्रकट करते हैं। कुछ तांत्रिक ग्रंथों में योनि को अलग-अलग गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। स्त्री-योनि, पुरुष-लिंग कि अहम भूमिका होती है जो ब्रह्म ऋण से मुक्ति दिलाते हुए मोंक्ष का मार्ग सुलभ करता है। 64 प्रकार की योनि का वर्णन पिछले लेख में किया हूं। नीचे दिखाई दे रहे लिंक पर क्लिक कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जो अत्यन्त ही दुर्लभ लेखनी है।
वर्ण
कुछ तंत्र ग्रंथों में योनि के प्रकार को रंगों और ऊर्जाओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
तंत्र शास्त्र में वर्ण का विशेष महत्व है, और यह सिद्धांत विभिन्न स्तरों पर देखा जाता है, जिसमें ऊर्जा, साधना, और देवी-देवताओं की उपासना शामिल है। जब हम “वर्ण” शब्द का उपयोग तंत्र शास्त्र में करते हैं, तो यह न केवल रंग या भौतिक रूप से जुड़ा होता है, बल्कि ऊर्जाओं, आंतरिक गुणों और दिव्य तत्वों का भी प्रतीक है।
वर्ण और योनि
तंत्र शास्त्र में स्त्री की योनि को विभिन्न रंगों या वर्णों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, जो उसके शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। हर वर्ण एक विशेष ऊर्जा, गुण या शक्ति को दर्शाता है। यह वर्गीकरण शारीरिक दृष्टिकोण से कम और आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। योनि के वर्ण और उनके गुण तांत्रिक साधना के दौरान ध्यान में आते हैं, क्योंकि हर वर्ण एक विशिष्ट तांत्रिक ऊर्जा या साधना के स्तर का प्रतिनिधित्व करता है।
कुछ तांत्रिक ग्रंथों में योनि के वर्णों के उदाहरण निम्नलिखित हैं।
1. श्वेत (सफेद): यह योनि पवित्रता, शांति, और सत्वगुण का प्रतीक माना जाता है। इसे उच्चतम और पवित्र ऊर्जा के साथ जोड़ा जाता है।
2. रक्त (लाल): यह योनि शक्ति, क्रिया, और तामसिक गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। लाल रंग को देवी की सृजनात्मक और विध्वंसक शक्ति से भी जोड़ा जाता है।
3. कृष्ण (काला): यह योनि गहनता, रहस्यमय ऊर्जा और आध्यात्मिक विकास के स्तर को दर्शाता है। काले वर्ण का संबंध महासाधना और गहन तंत्र साधना से होता है।
4. पीत (पीला): यह योनि समृद्धि, ज्ञान, और स्थिरता का प्रतीक है। इसे ज्ञान और आध्यात्मिक प्रकाश के साथ जोड़ा जाता है।
तांत्रिक साधना में वर्ण
तंत्र में वर्णों का उपयोग केवल रंग के रूप में नहीं होता, बल्कि इसे साधक की साधना की स्थिति और ऊर्जा के प्रवाह के रूप में देखा जाता है। योनि के विभिन्न वर्ण इस बात को दर्शाते हैं कि साधक की तंत्र साधना किस दिशा में जा रही है और वह किस ऊर्जा के साथ जुड़ रहा है।
तंत्र में योनि पूजा या उपासना के दौरान, साधक इन रंगों और ऊर्जाओं को समझकर अपनी साधना करता है। योनि को देवी शक्ति का प्रतीक मानते हुए, इन वर्णों के माध्यम से देवी की विभिन्न शक्तियों का आह्वान किया जाता है।
अतः तंत्र शास्त्र में “वर्ण” केवल एक रंग नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रतीक है, जो साधक को ऊर्जा, साधना और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
शक्ति की उपस्थिति
तंत्र शास्त्र में यह माना जाता है कि स्त्री की योनि में देवी शक्ति की उपस्थिति होती है, जो साधक को आत्मज्ञान और उच्चतर शक्तियों तक पहुंचने में मदद करती है।
तंत्र शास्त्र में स्त्री को सृजन, शक्ति, और दिव्यता का स्रोत माना जाता है, और योनि को शक्ति का प्रत्यक्ष रूप या केंद्र माना गया है। इसे “शक्ति तत्त्व” के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि, प्रजनन, और शक्ति का प्रतीक है। योनि में शक्ति की उपस्थिति का विचार विशेष रूप से तंत्र साधना के दौरान महत्वपूर्ण होता है, जहां स्त्री को देवी के रूप में पूजा जाता है और उसके शरीर को ब्रह्मांडीय ऊर्जा का निवास स्थान माना जाता है।
शक्ति की उपस्थिति का महत्व
- 1. योनि = देवी शक्ति का निवास
- तंत्र शास्त्र में यह मान्यता है कि स्त्री की योनि में दुर्गा, काली, या अन्य देवियों की शक्ति निवास करती है। यह शक्ति न केवल शारीरिक सृजन की क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी प्रतीक है। इसे एक दिव्य स्थल के रूप में देखा जाता है, जहां सृजनात्मक ऊर्जा समाहित होती है। इस ऊर्जा का आह्वान साधक तांत्रिक अनुष्ठानों और साधना के माध्यम से करता है।
- 2. सृजन और विनाश की शक्ति:
- योनि को तंत्र में शक्ति का केंद्र माना गया है, जो न केवल सृजन (जन्म) की ऊर्जा है, बल्कि इसे विनाशकारी शक्ति भी माना गया है। यह शक्ति ब्रह्मांडीय संतुलन का प्रतिनिधित्व करती है, जहां सृजन और विनाश दोनों ही जीवन चक्र का हिस्सा होते हैं। इसलिए, योनि को जीवन और मृत्यु दोनों का स्रोत माना गया है।
- 3. तांत्रिक साधना में शक्ति का आह्वान:
- तांत्रिक साधना में साधक योनि के माध्यम से शक्ति का आह्वान करता है। योनि पूजा और शक्ति पूजा के दौरान साधक इस शक्ति को जाग्रत करता है और इसे आत्मा की उच्चतम स्थिति तक पहुँचने का साधन मानता है। साधक इस शक्ति के माध्यम से आत्मिक विकास और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होता है।
- 4. कुंडलिनी शक्ति:
- तंत्र में कुंडलिनी शक्ति को भी योनि से जुड़ा माना गया है। यह ऊर्जा स्त्री के शरीर में जड़ित होती है और इसे जाग्रत कर साधक उच्च आध्यात्मिक स्थितियों तक पहुँच सकता है। योनि को इस कुंडलिनी शक्ति के जागरण का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना गया है। कुंडलिनी शक्ति को सर्पिणी के रूप में माना गया है, जो मेरुदंड के आधार में सुप्त अवस्था में होती है, और साधना के माध्यम से इसे जगाया जा सकता है।
- 5. दैवीय ऊर्जा का रूप:
- तंत्र शास्त्र में योनि को केवल भौतिक या शारीरिक दृष्टि से नहीं देखा जाता, बल्कि इसे दिव्य ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। इस दृष्टिकोण से, योनि पूजा देवी शक्ति के सम्मान और साधना का एक रूप है, जो साधक को दिव्यता और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।
तांत्रिक पूजा और योनि तत्त्व
तांत्रिक अनुष्ठानों में योनि पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे योनि पूजा या श्रीचक्र पूजा कहा जाता है। इस पूजा में स्त्री की योनि को देवी के रूप में पूजा जाता है, और इसे ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। तांत्रिक साधक इस पूजा के माध्यम से शक्ति की दिव्यता का आह्वान करते हैं और इसे सृजनात्मक, रक्षा करने वाली, और विनाशकारी शक्ति के रूप में स्वीकारते हैं।
योनि तत्त्व का यह दृष्टिकोण तंत्र शास्त्र में स्त्री की शक्ति और उसकी दैवीय स्थिति को स्थापित करता है, जो साधक को आत्मिक उन्नति और ब्रह्मांडीय शक्तियों के साथ संलग्न करने का मार्ग प्रदान करता है।
तंत्र शास्त्र के अनुसार, योनि पूजा (योनि की आराधना) की प्रक्रिया भी एक साधना का हिस्सा है, जिसमें स्त्री के शारीरिक और आध्यात्मिक स्वरूप की आराधना की जाती है। यह पूजा शक्ति की उपासना का एक रूप है, जिसमें सृजन और संरक्षण की ऊर्जा का महत्व होता है।
तंत्र शास्त्र में योनि को केवल शारीरिक दृष्टिकोण से नहीं देखा गया, बल्कि उसे परमात्मा के साथ जुड़ने और आत्मा की मुक्ति के साधन के रूप में माना गया है।
भगवान श्री चित्रगुप्त जी महाराज के वंशज अमित श्रीवास्तव द्वारा अपनी कर्म-धर्म लेखनी में वर्णित 64 प्रकार की योनि का वर्गीकरण प्राचीन सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक धारणाओं पर आधारित रूप से किए है, भगवान शिव-पार्वती योनि संवाद के अनुसार मृग योनि सबसे उत्तम योनि मानीं जाती है, जिसमें शारीरिक और मानसिक गुणों का मेल सर्वश्रेष्ठ दिव्य उर्जा का केंद्र है। यह वर्गीकरण आज के समय में प्रतीकात्मक रूप में देखा जाता है, और आधुनिक विज्ञान इसे शारीरिक विविधता के रूप में सामान्य रूप से मानता है। योनि का गूढ़ रहस्य आत्मज्ञान की प्राप्ति धार्मिक भौतिक सुखों को प्रदान कराते मोंक्ष का मार्ग सुलभ करता है।
वर्णों के आधार पर योनि का वर्गीकरण: कामसूत्र व तंत्र शास्त्र की रहस्यमयी व्याख्या का उद्देश्य
कामसूत्र और तंत्र शास्त्र दोनों ही प्राचीन भारतीय शास्त्र हैं जो शारीरिक संबंधों, प्रेम, और अध्यात्म पर प्रकाश डालते हैं। कामसूत्र, जिसे महर्षि वात्स्यायन ने रचा, प्रेम और शारीरिक संबंधों के साथ ही विवाह, सामाजिक जीवन, और नैतिकता पर भी ध्यान केंद्रित करता है। इसमें शारीरिक सुख के विभिन्न पहलुओं का संतुलन और यौन संगति पर विशेष जोर दिया गया है।
तंत्र शास्त्र में, स्त्री और पुरुष के शरीर को दिव्य ऊर्जा का केंद्र माना गया है। इसमें स्त्री की योनि को शक्ति और सृजन का प्रतीक समझा जाता है। योनि तत्त्व को देवी शक्ति का रूप मानकर पूजा जाता है, जो न केवल भौतिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
कामसूत्र और तंत्र शास्त्र दोनों में योनि के आकार, प्रकार और ऊर्जा का वर्णन मिलता है, लेकिन इनका उद्देश्य केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और जीवन के विभिन्न पहलुओं के बीच संतुलन को समझाना है। योनि का गूढ़ रहस्य समझ पाना आज की भारतीय शिक्षा के माध्यम से संभव नहीं है। यह समझ प्राचीन काल में गुरूकुल शिक्षा देने वाले ऋषि मुनियों तक थी। योनि से संबंधित और विस्तृत जानकारी के लिए स्त्री-पुरुष कोई भी हमारे भारतीय हवाटएप्स कालिंग सम्पर्क नम्बर 07379622843 पर हम लेखक अमित श्रीवास्तव से सम्पर्क कर सकते हैं। योनि से सम्बंधित इस आर्टिकल पर अपने विचारों को कमेंट बॉक्स में ब्यक्त कर सकते हैं या हमें हवाटएप्स कर सकते हैं।